हँसना किसे बुरा लगता है? इस दौर में हँसने के साधन भी कई हैं। ट्रेन, मेट्रो, एयरपोर्ट और पता नही कहाँ-कहाँ जब समय नहीं कट रहा होता तो अपने फेसबुक या व्हाट्सऐप ग्रुप्स पर जोक्स पढ़ लेता हूँ। थोड़ा हँस लेता हूँ तो थोड़ा सोच भी लेता हूँ।
ऐसे ही लतीफे पढ़ते-पढ़ते एक चीज कचोटने लगती है। वह है एक ख़ास तरह के चुटकुले, वह चुटकुले जो एक ख़ास रिश्ते के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। पत्नियों पर बनने वाले जोक्स।
मैं करीब सात आठ व्हाट्सऐप समूहों का सदस्य हूँ। इन समूहों में अलग-अलग आयु वर्ग और अलग-अलग प्रोफेशन से जुड़े लोग हैं। इनमें जितने भी लतीफे, जुमले या चुटकुले साझा किये जाते हैं, उन सभी में पत्नियों या शादी पर बनने वाले जोक्स सबसे ज्यादा कॉमन हैं।
वह ज्यादा बोलती हैं…वह हमेशा पति से काम करवाती हैं….वह बुद्धू हैं…उन्हें विवाद करने की आदत है…वह मेक अप का ज्यादा ख्याल रखती हैं…वह बाहर जाने के लिए तैयार होने में समय लगाती हैं। पत्नियों पर बने यह सेक्सिस्ट जोक्स उनके बारे में यही राय बनवाते हैं या कम से कम बनवाने की कोशिश करते हैं।
यह उन ही स्टीरियोटाइप्स का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें हम जाने अनजाने अपने मन में पलने देते आये हैं।
वह पति को बोलने तक नहीं देतीं… उनसे बेहतर टीवी है …मोबाइल भी उनसे कम बोलता है…शादी के बाद पति की हालत खराब हो जाती है …मेरी मति मारी गयी थी जो तुमसे शादी की… पत्नी मायके चली गयी है तो शान्ति है … पत्नी मर क्यों नहीं जाती … वगैरह-वगैरह। ऐसी ही कितनी पक्तियां उनमें कॉमन होती हैं। कॉमन जोक्स की कॉमन सेक्सिस्ट लाइन्स।
कल ही एक व्हाट्सऐप ग्रुप में मेरे एक दोस्त का मेसेज था- दीप्ती, सिन्धु और साक्षी को समर्पित। लड़कियों से जुड़े स्टीरियोटाइप्स को तोड़ने की बात करता हुआ। कुछ घंटे बाद उसने ही उस ग्रुप में एक जोक साझा किया जो बोलता था कि शादी के बाद घर में रेडियो की जरूरत नही होती, क्यूंकि पत्नी ही घर का रेडियो है जो लगातार बोलता रहता है।
जो लोग लतीफे तैयार करते हैं, वह बताते हैं कि ह्यूमर में किसी ख़ास प्रवृत्ति का ही मजाक उड़ाया जाता है। पत्नियों की ज्यादा बात करने की आदत पर जोक्स बनाने की परंपरा पहले से चली आ रही है, और जोक्स की दुनिया में मान्य भी हो गयी है इसलिए अब उसे चुनौती देना आसान नहीं है।
एक दोस्त बताता है कि कमजोर पक्ष पर ही हँसा जा सकता है और अगर सभी चीजें नैतिकता के नजरिये से देखने लग जाएं, तो हँसना ही बंद करना पड़ेगा। पर मेरा मानना है कि ह्यूमर का भी एक संस्कार होना चाहिए।
वही एक पक्ष पर हँसने की घिसी-पिटी परंपरा को तोड़ने का दौर है| मैं यह बोलने में नहीं हिचकिचाऊंगा कि जो भी यह पत्नी सेंट्रिक जोक्स रच रहा है उसके ह्यूमर में उसके अन्दर का पुरुष बोल रहा होता है।
यह उस सोच वाले समाज का नुमाइंदा है जो यह मानता, बोलता और समझता आया है कि महिलायें ज्यादा बोलती हैं, उनके जाने से घर में आजादी और शान्ति रहती है, वह अमेजन को अम्मा जान बुलाती हैं और दुनिया का हर पति अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता है।
संता-बंता का मामला पहले से ही क़ानून के दरवाजों तक पहुँच गया है। ऐसे में इस तरह के सेक्सिस्ट चुटकुलों पर भी बात की जाने की आवश्यकता है।
वरना मुझे उस दिन का इन्तेजार करना पड़ेगा जब पत्नियों द्वारा पतियों की कुछ ख़ास आदतों पर भी जोक बनने लगेंगे। शायद पत्नियाँ ऐसे ही अपने खिलाफ सेक्सिस्ट जोक्स का बदला ले सकेंगी।
The post क्यूँ मुझे लगता है कि पत्नियों पर बने जोक्स पुरुषवादी मानसिकता का नतीजा हैं appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.