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कावेरी जल विवाद के बारे में 10 महत्वपूर्ण बातें जो जानना ज़रूरी हैं

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सिद्धार्थ भट्ट:

5 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कावेरी जल विवाद पर फैसला देते हुए, कर्नाटक को 10 दिनों तक 15000 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया। कोर्ट के इस फैसले का कर्नाटक में भारी विरोध हुआ, जिसे देखते हुए 12 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को 15000 के बदले 12000 क्यूसेक पानी रिलीज़ करने का आदेश दिया, लेकिन इसके बाद भी हिंसक प्रदर्शन नहीं रुके। पूरे तनाव में अब तक दो लोगों की जान जा चुकी है। ये दोनों राज्य एकबार फिर से 150 साल पुराने इस विवाद को लेकर आमने सामने हैं।

आइये जानते हैं इस विवाद के बारे में 10 ज़रुरी बातें जो आपको पूरे मसले को समझने में मदद करेगी-

1) कावेरी कर्नाटक के तालकावेरी कोडगु से निकलती है, जो प्रसिद्ध वेस्टर्न घाट में स्थित है। कर्नाटक के पहाड़ी क्षेत्र से उतरकर यह नदी केरल और तमिलनाडु में प्रवेश करती है और पुदुचेरी (पूर्व में पांडिचेरी) से होकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है।

2) तमिलनाडु में कावेरी का 44000 वर्ग किलोमीटर और कर्नाटक में 32000 वर्ग किलोमीटर का तटीय क्षेत्र आता है।

3) कावेरी विवाद केवल तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच नहीं है, इसमें केरल और पुदुचेरी भी शामिल हैं। केरल की सहायक नदियाँ कावेरी को एक बड़ी नदी बनाने में अहम् भूमिका निभाती हैं, वहीं पुदुचेरी में कावेरी बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इन कारणों से ये दोनों राज्य भी कावेरी से इनको मिलने वाले पानी से अधिक पानी की मांग कर रहे हैं।

4) सिंचाई के लिए कावेरी नदी की अहमियत को समझते हुए तमिलनाडु के चोल राजाओं ने दसवीं सदी में ही इस पर चेक डैम और रिज़र्वायर बनाना शुरू कर दिया था। इसके फलस्वरूप आज तमिलनाडु राज्य में करीब 30 लाख एकड़ की कृषि भूमि, सिंचाई के लिए पूरी तरह से कावेरी नदी के पानी पर निर्भर है। वहीं आज के कर्नाटक की मैसूर रियासत ने पहली बार 1934 में कृष्ण राज सागर नाम का पहला रिज़र्वायर बनाया था।

5) इन दोनों राज्यों में इस विवाद का इतिहास करीब 150 साल पुराना है जब, सन 1892 में तत्कालीन ब्रिटिश भारत में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर पहला समझौता हुआ था। 1924 में इसी मुद्दे पर फिर एक समझौता किया गया। ध्यान देने वाली बात है कि आज के कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों ही राज्य ब्रिटिश भारत में मद्रास प्रोविंस का हिस्सा थे।

6) दोनों राज्यों के बीच असल विवाद की शुरुवात 1960 में हुई, जब कर्नाटक ने 1924 के समझौते को रद्द कर कावेरी की सहायक नदियों पर 4 बड़े रिज़र्वायर बनाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को भारत सरकार और योजना आयोग ने ठुकरा दिया और किसी भी तरह की आर्थिक मदद करने से मना कर दिया। हालांकि कर्नाटक ने केंद्र की बात को दरकिनार करते हुए राज्य के फंड का इस्तेमाल इन 4 रिज़र्वायरों का निर्माण किया।

7) 1960 में कर्नाटक के चार रिज़र्वायर बनाने की परियोजना का, तमिलनाडु ने कड़ा विरोध किया और केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल बनाए जाने की मांग की, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया।  इसके बाद तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिसे मानते हुए 1990 में कावेरी जल विवाद को सुलझाने के लिए ‘द कावेरी वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल’ का गठन किया गया।

8) द कावेरी वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल ने 2007 में, तमिलनाडु को 419 टी.एम.सी.फीट (थाउजेंड मिलियन क्यूबिक फीट = एक दिन में लगातार 11000 क्यूबिक फीट/सेकंड पानी), कर्नाटक को 270 टी.एम.सी.फीट, केरल को 30 टी.एम.सी.फीट और पुदुचेरी को 7 टी.एम.सी.फीट पानी दिए जाने का फैसला सुनाया।

9) तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों ही राज्यों ने पानी के इस बंटवारे को मानने से इनकार करते हुए इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर की। इस कारण केंद्र सरकार, ट्रिब्यूनल के इस फैसले को अपने गजट में शामिल नहीं कर पाई और ट्रिब्यूनल के इस फैसले को लागू नहीं किया जा सका है। वर्तमान में दोनों ही राज्य कावेरी नदी के पानी के बंटवारे पर ट्रिब्यूनल के 1991 के निर्देशों का ही पालन कर रहे हैं।

10) 802 किलोमीटर लम्बी यह नदी सिंचाई का प्रमुख साधन है और दक्षिण भारत की सभी नदियों की तरह यह भी मानसून पर निर्भर करती है। मानसून के अच्छा होने पर नदी में पानी भरपूर मात्रा में होता है, लेकिन कमज़ोर मानसून की स्थिति में पानी को लेकर विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है।

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