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कानून को ठेंगा दिखाकर राजस्थान में अब भी जारी है ‘विच हंटिंग’

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विश्व राज सिंह:

विच हंटिंग, एक ऐसा शब्द जो अंतर्राष्ट्रीय इतिहास की किताबों में हमने खूब पढ़ा-सुना है। 17वीं-18वीं शताब्दी में जब भी यूरोप में वहां के तथाकथित सामाजिक व धार्मिक नियमों के खिलाफ जाकर कोई व्यक्तिगत निर्णय लेता था, तो उसे समाज के ठेकेदार भूत-भूतनी कह कर समाज से बहिष्कृत कर देते या जला कर मार देते थे। इसी प्रथा को इतिहासकार विच हंटिंग कहते हैं।

rajasthan-witch-hunting

आज राजस्थान के एक गांव में ऐसी ही एक घटना से रूबरू हुआ तो आत्मा कांप उठी। इस कंपन का कारण किसी जीवित प्रेत का डर नहीं, बल्कि उस तथाकथित प्रेत के मासूम चेहरे में छिपा चीत्कार था। यह वही चीत्कार था जिसमें उसके मासूम बच्चों का रुदन छिपा था, यह वही चीत्कार थी जिसमे उसका प्रियतम कराह रहा था।

यह घटना राजस्थान के एक दक्षिणी जिले की है, जहां प्यारे लाल जी का परिवार और उन जैसे अन्य कुछ परिवार जाति पंचायत द्वारा समाज से बहिष्कृत कर दिए जाने के बाद दयनीय जीवन जीने पर मजबूर हो गए हैं। इस सामाजिक बहिष्कार का कारण भी बड़ा ही साधारण है, इन बहिष्कृत परिवारों ने मृत्युभोज को सिरे से नकार दिया था। ये आश्चर्य ही है कि जो मृत्युभोज पहले से गैर-कानूनी है के कारण जाति-पंचायत, जो स्वयं भी गैर-कानूनी है ने तथाकथित सामाजिक नियमों की आड़ लेते हुए देश के संविधान व कानून व्यवस्था को उसका असली चेहरा दिखा ही दिया।

जब मैं इस पूरे मामले की जांच के लिए पीड़ित परिवार से मिला तो पता चला कि प्यारे लाल जी के परिवार को पिछले 5 वर्षों से उनके ही गांव के कुछ प्रभावशाली लोग परेशान कर रहे हैं। इस पूरे प्रकरण की शुरुआत तब हुई जब प्यारेलाल जी ने अपनी व्यक्तिगत ज़मीन किसी कारणवश जाति-पंचायत के फैसले के खिलाफ किसी और को बेच दी। सामाजिक तौर पर मामला इतना गर्माया कि उनको पुलिस की शरण लेनी पड़ी तथा बाद में जाति-पंचायत में जुर्माना राशि भी जमा करवानी पड़ी। हद तो तब हो गयी जब यह जुर्माना राशि लेने के बाद भी उनको जाति से बहिष्कृत कर दिया गया और यह ऐलान करवा दिया गया कि अब इनसे कोई संपर्क नहीं रखेगा अन्यथा उनका हश्र भी यही होगा। इतना ही नहीं उनके साथ कई बार मारपीट भी हुई जिसके कारण उनका एक हाथ भी टूट गया था। आजकल प्यारेलाल जी राजस्थान से बाहर राजकोट में मज़दूरी कर एक निर्वासित का जीवन जीने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें लगातार धमकाया जा रहा है कि अगर गांव में कदम रखा तो सिर्फ मारा ही नहीं जायेगा बल्कि पूरे गांव में नंगा कर घुमाया जायेगा। यहां मैं यह भी बता दूं कि प्यारे लाल जी शारीरिक रूप से अक्षम हैं।

प्यारेलाल जी के अलावा उनकी पत्नी के खिलाफ भी बहुत सोची-समझी साजिश के तहत कार्य किया जा रहा है और यह अफवाह फैलाई जा रही है कि वह डायन (प्रेतनी) हैं तथा जादू-टोना जानती हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि अब कोई भी उनके घर का खाना, प्रसाद कुछ नहीं खाता। यहां तक कि उनके छोटे बच्चों को भी छोटे-बड़े सभी डायन के बच्चे कह कर अपमानित करते हैं। इन बच्चों के साथ कोई नहीं खेलता। इस तरह का अपमानित बचपन जीकर क्या होगा इन बच्चों का भविष्य? यह सोचकर भी डर लगता है।

हमारे देश का संविधान सबको स्वतंत्रता का अधिकार देता है, परंतु प्यारेलाल जी का निर्वासित जीवन देख यह एहसास होता है कि संविधान किताबों तक ही सीमित है। राजस्थान में डायन एक्ट 2015 बना हुआ है, लेकिन प्रेमा बाई का चीत्कार सुन लगता है शायद हम अब भी विकास और प्रगतिशीलता का खोखला गाना ही गा रहे हैं। आश्चर्य की सीमा तो तब लांघ जाती है जब पता चलता है कि एस.पी. ऑफिस में लिखित शिकायत दर्ज़ करवाने के बाद भी स्थानीय पुलिस एफ.आइ.आर. तक दर्ज नहीं करती और मामले को पारिवारिक विवाद कहकर निपटा देती है।

खैर मामला संगीन है, हालात नाज़ुक हैं और प्रशासन सोया हुआ है। यही तो भारत है, इंडिया से एकदम अलग… सोचता हूं इस पूरे परिदृश्य में चांडाल कौन है प्रेमा बाई, यह समाज या प्रशासन और हम, जो किसी भारतीय नागरिक की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को तार-तार करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते…

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