हेड शेव कराया है।
क्यों?
क्यूंकि कराना था। मन था मेरा हेड शेव कराने का। ऐसे ही जैसे कॉलेज तक छोटे बाल थे, कन्धों तक फिर छोटे…वैसे ही। जैसे बचपन से आज तक अपनी छोटी बड़ी मर्ज़ियों को जिया वैसे ही। देखना था कि खुद को लेकर हम कितने सहज हैं। सारे बाल कटा लेने से पहले वाली उस धुक धुकी को जीना था, उस डर को।
देखना था कि सुंदर बालों को आईने में देख जैसे चौड़ी मुस्कुराहट मुस्कुराते हैं, शेव्ड हेड में वो कितनी चौड़ी या कम होगी। अपनी इनर ब्यूटी पर कही बातों पर खुद को एक बार चैलेंज करना था। जो थी, उसमें से कितना रह गई ये तौलना था. खुद के प्रति थोड़ा और सहज हो जाना था।
थोड़ा और मज़बूत भी होना था, थोड़ा और बगावती। अपने दुस्साहसों और इम्परफेक्शन्स को तमगों सा पहनना था। तमाम ब्यूटी कॉन्सेप्ट, कॉस्मेटिक मार्केट, लोगों के कौतूहल और सवालों के बीच खुद को खड़ा करना था। जवाब देना भी था और हंसकर उनको मज़ाक में उड़ा भी देना था। ये उन्हें चुनौती भी थी देनी थी और एक बदला सा भी ले लेना था!
बहुत से नए अनुभवों को जीना था, लोगों के रिएक्शन्स को सुनना था। उन्हें और खुद को थोड़ा और करीब से देखना था। ये अपने कंफर्ट जोन से थोड़ा बाहर निकलना था। बाल खो चुके कैंसर पेशेंट्स के बारे में सोचना भी था और बाल डोनेट करने के लिए घंटो, दिनों लोगों को खोजना भी।
ये अनुभव अपनी मां से ये लताड़ सुनना भी था कि ‘मैं मर जाउं तो मुड़ा लेना सिर।’ फिर अपनी मां अपनी दीदीयों को मनाना भी। अपने पिता से सादगी से सुनना कि ‘बेटा तुम्हारा शरीर, तुम्हारे बाल, तुम्हारी मर्ज़ी है। जो ठीक लगे वो करो।’ ये दोस्तों की सख्त ना भी सुनना था और ये भी कि, ‘ चलो कोई कैपेंन सा बनाते हैं। मैं भी साथ हूं’।
यही था हेड शेव कराना…! खूब एक्साइटमेंट और नर्वसनेस को एक ही वक्त पर महसूस करना।खूब खुश होना। शेव्ड हेड में खुद को खूब मुस्कुराता हुआ देखना…
अपनी बहन से पूछना.. अजीब है क्या?
और उसका जवाब सुनना.. नहीं तुम्हारी स्माइल तो वही है न..!
ये सड़कों पर मुंडे सिर चलने का साहस भी था और देखने वालों को नज़रअंदाज कर सकने की बेफिक्री भी। लोगों के…. ‘क्या हुआ-क्या हुआ’ का जवाब देना था।
एक नए संसार में दाखिल सा होना था थे।
ये कई हफ्तों तक इस बारे में सोचना था। एक तारीख तय करनी थी और तारीख से 5 दिन पहले अचानक जाकर हेड शेव करा लेना था।
अचानक ही..?
हां।
क्यों?
क्योंकि मन था मेरा हेड शेव कराने का..
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