Quantcast
Channel: Society – Youth Ki Awaaz
Viewing all articles
Browse latest Browse all 12582

शिक्षा और भूख : देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर!

$
0
0

“देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर”, बिहारी जी की ये एक पंक्ति आज से एक साल पहले से मेरे जेहन में घर सी कर गयी है। ये मेरी कहानी कही न कही इन्ही पंक्तियों को सत्य करती दिखाई देती है। राजस्थान के उस छोटे और खुबसूरत शहर ‘डूंगरपुर’ ने न केवल मुझे परिस्थितियों से अवगत कराया था बल्कि मेरे खुद के होने का एवं मेरे दायित्वों का भी एहसास दिया था, मुझे। ये छोटी सी कहानी…..

एक छोटी बच्ची स्कूल ड्रेस में बाज़ार में खड़ी थी। उसके हाथ में एक छोटी सी टोकरी थी और उसमे थी कुछ सब्जियां। वो आवाज़ लगा रही थी सब्जी ले लो, सब्जी ले लो! मुझे न चाहते हुए भी उसके पास रुकना पड़ा। उसकी मासूमियत उस सरकारी स्कूल ड्रेस में और भी खिल रही थी! मैंने उससे उसका नाम पूछा। बहुत ही मासूमियत के साथ उसने जवाब दिया पूजा!

फिर मैंने पूछा किस कक्षा में पढ़ती हो और तुम्हारा गावं कहा है? जवाब आया तीसरी कक्षा में और मेरा गावं न दूर है यहाँ से। अब फिर सवाल, कितना दूर है? वो बहुत दूर है, पैदल चलना पड़ता है फिर टेम्पो से यहाँ आती हूँ! अच्छा…. उसके बातों ने मंत्रमुग्ध कर दिया मुझे।

अब मुझे अपने सवाल बेवजह और फालतू लग रहे थे। और ऐसा उसकी जवाबों से भी लगने लगा था। और ये बहुत जायज़ भी था। भला पेट के सामने सवाल किस को रास आते हैं! वहां मेरे और उसके साथ अजीब सवाल थे! अबतक मैं इस बात को समझ चुका था कि मैं उसकी भावनाओं को बिना किसी बेहतरी के वादे के साथ कुरेद रहा हूं।

खैर उसे सब्र की आदत थी और इसी के आसरे उसने मुझसे पूछा, भैय्या कुछ लेना है आपको कि ऐसे ही बाते कर रहे हो? इतनी छोटी उम्र, सुबह हाथ में किताबें तो शाम में सब्जी की टोकरी। भरे बाज़ार में खूब शोर-शराबे के बीच उस मासूम की नज़रे और दृढता अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रही थी! इस उम्म में जब बच्चे अपने पिता की उंगलिया पकड़ उस बाज़ार में हर कुछ जानने की कोशिश कर रही होती है, वो एक गाइड की तरह उस बाज़ार के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थी।

अब सवाल ये था कि क्या ये समाज की देन थी? या सरकार की नाकामियां? शिक्षा का अधिकार का ही ये दूसरा रूप है जिसका सवाल लिए वो छोटी बच्ची 3 घंटे बाज़ार में खड़ी रहती है! किताब की चाहत की जगह शायद पैसों की ज़रूरत उसे ज़्यादा थी। आह्ह! उसका और हमारे समाज का ये दर्द, गरीबी की जंज़ीरो में जकड़ी ज़िंदगी।

उस मासूम सी आँखों ने सब बयां कर दिया था। सर्व शिक्षा अभियान 2001 का नारा है ‘सब पढ़ें सब बढें।’  लेकिन शिक्षा के पहले शायद भूख भी आती है, नहीं तो हर मज़दूर बोझ की जगह किताब उठाता।

बहुत ही अजीब लगा मुझे जब मैंने आज सुबह की अखबार में ये पढ़ा कि अंग्रेजी स्कूलों में जाने वाले बच्चों के टिफ़िन की जाँच की जाये कि क्या उसमे जंक फ़ूड है? जिससे की उनकी सेहत का ख्याल रखा जा सके! मेरी इस कहानी में जहाँ पूजा हरी सब्जियां बेच रही है और उसे खुद नहीं पता की कल के दोपहर स्कूल में उसे चावल मिलेगा या उसमे पड़ा कीड़ा! एक तरफ मिड डे मील की गुणवत्ता है जिसकी जांच पता नहीं कैसे होती है और एक तरफ घर से आने वाले टिफिन की जांच, विडंबना किसी अलग स्तर पर है।

अगर मेरी जगह पूजा इस खबर को पढ़ रही होती तो शायद यही सोचती आखिर सरकार क्यों ये चाउमीन, समोसा, रोल, पास्ता, इत्यादि बंद करवा रही है? हमें दे देते तो कितना अच्छा होता? पूजा जैसे बच्चों के लिए ये जंक फ़ूड और फ़ास्ट फ़ूड, ड्रीम फ़ूड के जैसे होते हैं।

The post शिक्षा और भूख : देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर! appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 12582

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>