भारत में सड़क सुरक्षा को लेकर प्रचलित यह जुमला– भारत सड़क दुर्घटनाओं के मामले में दुनिया की राजधानी है, भले ही आपने ने ना सुना हो मगर इस जुमले के प्रति आप सहमति जरुर व्यक्त करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि हम सब की ही तरह आपका भी भारत के किसी ना किसी हिस्से की सड़क से गुजरना होता है। आप भी इस बात को महसूस करते हैं कि हमारे देश की सड़क सुरक्षा में बहुत सारी खामियां हैं। आये दिन सड़कों पर होने वाले हादसों से आप भी दो-चार होते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के साल 2015 के आकड़ों के मुताबिक भारत में करीब ढेड़ लाख लोग सड़क हादसों में मारे गये। यानी साल 2015 में हमारे देश में हर एक घण्टे में 17 लोगों की मौत सड़क हादसे के चलते हुई। हर घण्टे होने वाली 17 मौतें महज एक संख्या नहीं है बल्कि ये 17 ज़िन्दगियां हैं जो हमारे-आपको ही घर-परिवार का हिस्सा थीं।
हम सबने भले ही इस दुखद सच को स्वीकार लिया हो और इसे किस्मत का खेल या फिर भगवान की मर्जी समझ कर अनदेखा करते जा रहे हों। मगर यह सब इतना आसान नहीं है। इन सड़क दुर्घटनाओं की चपेट में जब भोले-भाले स्कूल जाते बच्चे आते हैं तो दिल की धड़कने रुक जाती हैं, मन व्याकुल हो जाता है। दिमाग में यही चलता है कि बस अब बहुत हो गया, अब मानव जनित होने वाले सड़क हादसे रुकने चाहिए।
यूपी के एटा जिले में हुआ सड़क हादसा ऐसा ही एक ताजा आघात है जिसमें 12 मासूम बच्चों की मौत हुई है। इससे पहले भी यूपी के ही मऊ जिले में एक स्कूल वैन ट्रेन से भीड़ गई थी और कई मासूमों की मौत हो गई थी। यह सिरसिला आखिर कब तक जारी रहेगा, इस पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
एटा जिले में हुए हादसे की गहराई में जायें तो पता चलता है कि इस हादसे के लिए कई स्तर की खामियां जिम्मेदार हैं। सबसे पहली खामी तो यही रही कि जिला प्रशासन के भारी सर्दी व घनघोर कोहरे के मद्देनजर दिये गये छुट्टी के आदेश का पालन उस निजी स्कूल ने नहीं किया। दूसरी सबसे बड़ी खामी यह रही कि जो ट्रक स्कूल वैन से टकराया उसे उस रास्ते पर चलने की दिन में अनुमति ही नहीं थी। अगली और सबसे आम खामी यह रही कि स्कूल वैन में क्षमता से ज्यादा संख्या में बच्चों को बिठाया गया था।
कहने का तात्पर्य यह है कि एटा सड़क हादसे के पीछे जो खामियां थी, वह बहुत ही आम किस्म की हैं। यानी इस घटना के पीछे वो सुरक्षा मानक जिम्मेदार हैं जिनका पालन करना बुनियादी दायरे में आता है। मगर हम सब हैं कि अपनी आदत से बाज़ ही नहीं आते। हममें से तो कई ऐसे भी युवा हैं जो सड़क परिवहन के नियमों को तोड़ने में अपनी शान समझते हैं। यह वाकई हम सब के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
अंत में बस यही कहना है कि विश्व गुरु बनने का सपना देखने में कोई बुराई नहीं है, दुनिया की सबसे अधिक विकास दर हासिल करने में भी कोई बुराई नहीं है और चन्द्रयान भेजने में भी…। बुराई इसमें है कि देश में हर घण्टे में हममें से 17 लोगों की जान सड़क हादसे के चलते जा रही है, हमारे-आपके घरों के स्कूल जाते मासूम बच्चे इन सड़क हादसों का आये दिन शिकार हो रहे हैं…और हम कुछ कर नहीं पा रहे हैं।
दौड़ती-भागती जिन्दगी में अब रूककर सोचने की समय आ गया है। सरकार के बनाये सड़क सुरक्षा कानून तो ठीक हैं मगर इनके लागू कराने में अभी भी बहुत सी खामियां हैं। इसलिए हम युवाओं को इसके लिए आगे आने और इन्हें लागू करवाने में सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत आन पड़ी है।
यह फोटो प्रतीकात्मक है।
फोटो आभार: गेटी इमेजेस
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