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Channel: Society – Youth Ki Awaaz
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“चुनाव में बगावतियों और बारात में जीजा-फूफा की पूंछ टेढ़ी होती है।”

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कहे झम्‍मन बुरा न मानिए
बारात में जीजा-फूफा
चुनाव में बगावतिये संभालिए।

चुनाव और शादी एक सिक्‍के के दो पहलू हैं। तैयारियां दोनों की होती हैं। दोनों में विघ्‍नसंतोषी और बिचौलिये भी होते हैं। एक में घर बहू आती है तो, दूसरे में सत्‍ता। बहू भी लक्ष्‍मी लाती है और सत्‍ता भी। बहू के आने के बाद ही तो सास की सत्‍ता बनती है। बहू वही जो लक्ष्‍मी लेकर आए। चुनाव वही जो सत्‍ता सुख दिलाये। यह जरूरी नहीं कि बहू लक्ष्‍मी लेकर आए। अगर बहू नौकरी वाली है तो लक्ष्‍मी आएगी। यह भी जरूरी नहीं कि सत्‍ता आपके पास ही आए, आपके जीजा, चाचा, फूफा, बाबा के पास भी सत्‍ता आ सकती है तो भी सत्‍ता आपकी मानी जाएगी।

एक्‍सिडेंट आप करेंगे और कहा जाएगा फलाने मंत्री/विधायक के भतीजे ने मारी टक्‍कर दो घायल अस्‍पताल में तीन बिस्‍तर पर घर में। चुनाव में बगावतियों और बारात में जीजा और फूफा की  पूंछ  टेड़ी होती है। आप कितनी ही कोशिश कर लीजिए, शादी के पहले और शादी की बाद भी टेड़ी ही निकलेगी। चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी टेड़ी।

जीजा और फूफा की नस्‍ल हर जगह पाई जाती है। बस समझने की देर है। इनकी खासियत होती है, जरा सा सम्‍मान मिला तो मुर्दे की तरह अकड़ गए। जरा सी तवज्‍जो नहीं मिली तो, छुईमुई की तरह सिकुड़ गए। ऑफिस से लेकर घर तक और नगरपालिका चुनाव से लेकर संसद चुनाव तक। जो जीजा की तरह अकड़ते हैं वे गठबंधन के लिए सौदा लेकर आते हैं, फूफा की तरह अकड़ने वाले जनाधार वाले माने जाते हैं। दोनों की अकड़ चुनाव के पहले होती चुनाव के बाद इनके रंग गहरे और गाढ़े हो जाते हैं।

चुनाव से पहले गठबंधन में जीजा और फूफा की सलाह ली तो शादी की बात दही हांडी की तरह अधर में लटक जाएगी और उसे वो ही फोड़ पाएगा, जिसके पास मजबूत गठबंधन होगा। पहले की बात तो और थी जब एक ही घर का राज होता था, अब तो भानुमति का कुनबा होता है। राष्‍ट्रीय टीम होती है। हर प्रांत का खिलाड़ी होना चाहिए। जीत उसी की होगी, जिसकी पकड़ जमीन से लेकर सत्‍ता तक होगी। जीजा साले, चाचा-भतीजे या दादाजी वाली पार्टी की।

हर कोई इसी जुगाड़ में है कि इस चुनावी शादी में बहू उनके यहां आए। यह दीगर बात है कि यह शादी तो हर पांच साल में होनी है, लेकिन पांच साल में करोड़पति बनने की इच्‍छा किसकी नहीं होगी। पहले करोड़पति बन जाएं, बाद में तो अरबपति बन ही जाएंगे। चुनावी बहू आने के बाद लक्ष्‍मी घर में पसर कर बैठ जाती है और उल्‍लू भाग जाते हैं। सरकारी बाबू 35 साल तक नौकरी करता है और वह लखपति नहीं बन पाता, पता नहीं कौनसा काला जादू है, जिसके बल पर पांच साल में करोड़पति बन जाते हैं।

बारात की तैयारियां जोरों पर हैं। जीजा और फूफा के साथ-साथ साले भी सक्रिय हो गए हैं। चाचा, भतीजा भी जुगाड़ लगा रहे हैं। दादाजी भी बेंत लेकर तैयार हैं, दादाजी की बस यही कमी है कि सीधे खड़ा नहीं रहा जा रहा। सभी असामाजिक तत्‍व, आत्‍मत्‍व की तलाश में टोली बनाये और टोपी लगाए खड़े हैं, इस बार की टोपी किसी उछालनी है, किसे टोपी पहनानी है या किसको टोपा बनाना है।

लड़की का बाप ”वोटर” असमंजस में है, किसे अपनी लड़की ब्‍याह दूं, जिससे पांच साला जिन्‍दगी सुकून से गुजर सके। एक ही थैली के बटटे हैं। सभी एक-दूसरे की कांच खोलने में लगे हैं। अब देखो किसके कपड़े बचते हैं, किसके बिकते हैं। कुछ भी हो चुनाव में हार तो वोटर की ही होगी। जो भी आएगा उसे ही सताएगा।

The post “चुनाव में बगावतियों और बारात में जीजा-फूफा की पूंछ टेढ़ी होती है।” appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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