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Channel: Society – Youth Ki Awaaz
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डिजिटल समानता की लड़ाई लड़ती ये दो ज़बरदस्त महिलाएं

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Editor’s note: ये लेख हमें  Youth Ki Awaaz के इस हफ्ते के विषय #WomensDay के तहत मिला है। मकसद है एक बहस शुरु करना कि हम समाज में कैसे लिंग आधारित समानता/जेंडर इक्वॉलिटी ला सकते हैं। अगर आप भी लिंग आधारित हिंसा, लिंग आधारित भेदभावपूर्ण टिप्पणियाें के शिकार हुई/हुए हैं और चाहती/चाहते हैं किसी पॉलिसी में बदलाव आए या परिवार, दोस्तों, दफ्तरों में कैसे लिंग आधारित भेदभाव को रोका जा सकता है, इसपर है कोई सुझाव तो हमें लिखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कहानी 1- भोपाल की कृष्णा नगर बस्ती में रह रही 26 साल की शकुन को देखकर अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि वह कितनी प्रतिभाशाली है। जनरल नर्सिंग परीक्षा में मेरिट में आने के बाद प्रेग्नेंट होने के कारण नर्सिंग में प्रवेश नहीं ले सकी। उनके पति डाटा इंट्री आपरेटर हैं, जिससे 6000 मासिक आय होती है। इन दिनों आर्थिक तंगी में जी रही शकुन बताती हैं कि उसने कुछ दिन बस्ती के 8वीं तक के बच्चों को मैथ व अंग्रेजी की कोचिंग देकर अपना घर भी चलाया। शकुन ने रोज़गार खोजने के लिए अखबार लगवाया। यूं तो उसने पति से सुन रखा था कि इंटरनेट पर कई काम की जानकारी आसानी से मिल जाती है। लेकिन कभी नेट चलाकर नहीं देखा। जब पति ने घर पर पुराना कम्प्यूटर लाया तो उसे सबसे ज़्यादा खुशी हुई।

उन्हें दूसरा सहारा मिला इंटरनेट सेंटर और ई वालेंटियर का। यहां आकर शकुन ने सरकार की ऑनलाइन सेवाओं के बारे में समझा और अपना जीमेल अकाउंट बनाया और बायो डाटा बनाकर कई जगह आवेदन भी किया। हालांकि शकुन के पति नहीं चाहते कि वह यह सब सीखने और काम करने बाहर जाये, क्योंकि झुग्गी का माहौल अच्छा नहीं है।

कहानी 2- नूतन कालेज भोपाल की छात्रा महेश्वरी बताती हैं कि, उसके घर में कम्प्यूटर और स्मार्ट मोबाइल है जिसमे फोटो खींचने से लेकर इंटरनेट तक चलता है। लेकिन वह हमेशा उसके बड़े भाई के हाथ में ही रहता है। उसको कम्प्यूटर छूने की मनाही थी क्यूंकि अगर बिगड़ गया तो? महेश्वरी के शब्दों में यह सब उसे भेदभाव जैसा लगता था। महेश्वरी कहती हैं कि, कोर्स में इंटरनेट सुना था तो वो मुझे, किसी सपने जैसा लगता था। एक बार कॉलेज का फार्म भरने साइबर कैफे गई तो वहां कुछ लड़कियां खुद ऑनलाइन फार्म भर रही थी। लेकिन भीड़ होने के कारण हमें शाम तक लाइन में लगे रहना पड़ा, तब जाकर फार्म भरा गया। उस समय  मुझे लगा कि मैं क्यों मै अपना फार्म खुद नहीं भर सकी ? उसके बाद मैंने और मेरी सहेली ने नेट सीखने के लिए कैफे वाले से पूछा तो उसने 15 दिन का 2000 रु. बोला जो हम नहीं दे सकते थे।

दूसरी समस्या घर से दूर जाने की थी, क्योंकि हम जैसी लड़कियों को सीधे घर से कालेज जाने-आने की हिदायत है। तभी बस्ती में ई सेंटर का पता चला तो कॉलेज से थोड़ा टाइम एडजस्ट कर चुपके से वहां जाने लगी। लोग बोलते थे कि इटरनेट पर गंदी चीजें रहती हैं। लेकिन वहां मुझे नई-नई ऑन लाइन सेवाओं के बारे में जानकारी मिली और जब मैंने ईमेल आईडी बनाई तो उत्साह और बढ़ गया। कुछ दिन तो इन्टरनेट छोड़ने का मन ही नहीं करता था। फिर एक दिन पापा को ऑफिस का बिल तैयार करना था तो वे भैया से पूछ रहे थे, लेकिन वो बता नहीं पाये तब मैने नेट से बिल की कॉपी निकालकर वैसा ही बिल तैयार करके दे दिया। इस एक घटना ने मेरे प्रति परिवार के भरोसे को बदल दिया। महेश्वरी बताती है कि अब मुझे कोई इंटरनेट चलाने से नहीं रोकता।

सूचना संचार इंटरनेट जैसे संसाधनों पर बराबरी से महिलाओं को अधिकार देने में आज भी हम काफी पीछे हैं। महिलाओं के हाथ में मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट होने को विकास के बजाय उनके चरित्र के साथ जोड़कर देखा जाता है। बावजूद इसके कई महिलाएं हैं जो डिजिटल असमानता के खिलाफ लड़ रही हैं।

The post डिजिटल समानता की लड़ाई लड़ती ये दो ज़बरदस्त महिलाएं appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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