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राजस्थान के इस गांव में है भाइयों के बीच पत्नी बांटने की प्रथा

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अनीश गुप्ता और त्रिश्ना सरकार

ये लेख Down to Earth के लेख का हिंदी अनुवाद है

राजस्थान के अलवर से 66 किमी दूर मनखेरा गांव। पूरे गांव में जाट समुदाय का बोलबाला। जनसंख्या के हिसाब से भी और रुतबे के हिसाब से भी। हां कुछ ब्राह्मण और दलित(चमार और बाल्मीकी) लोग भी हैं। हम मनखेरा गए तो थे भारत पर मंडरा रहे कृषि संकट पर रिसर्च और सर्वे करने लेकिन जो दो सर्वे हमने किए उसमें और भी बातें निकल कर सामने आईं। जून 2007 और 2013 में किए गए सर्वे से महिला भ्रूण हत्या, बहुपति व्यवस्था(एक वक्त पर एक से ज़्यादा पति होना) जैसी सामाजिक सच्चाइयां भी हमारे सामने आईं। लेकिन जिस बात ने हमें दंग कर दिया वो था ज़मीन अधिकार और शादी के बीच एक गहरा संबंध।

शायद ये सोचना भी मुश्किल हो सकता है कि इन दो अलग-अलग मुद्दों में कोई संबंध भी हो सकता है, लेकिन मनखेरा गांव में ऐसा संबंध भी है और ये बेहद खतरनाक भी है। मनखेरा में सेक्स रेशियो चिंताजनक स्तर पर है। दलित, ब्राह्मण और OBC का सेक्स रेशियो 2013 में क्रमश: 876, 865 और 813 था। गांव की जनसंख्या का 60 प्रतिशत, जाट समुदाय है। उनका मुख्य व्यवसाय पैतृक ज़मीन पर खेती का है। औसत देखें तो ब्राह्मणों के पास गांव में सबसे ज़्यादा ज़मीन है लेकिन वो पूरी तरीके से खेती पर निर्भर नहीं हैं। गांव में ज़्यादातर दलितों के पास ज़मीन नहीं है। जिनके पास है भी वो ज़मीन का बहुत छोटा टुकड़ा है और अलग-अलग हिस्सों में है।

पूरे गांव में औसत लैंड होल्डिंग(ज़मीन पर अधिकार) भी काफी कम और अलग-अलग हिस्सों में बंटा हुआ है। ब्राह्मण परिवारों के पास 1.4 हेक्टेयर, दलितों के पास 2 हेक्टेयर और OBC (ज़्यादातर जाट) के पास 1 हेक्टेयर कुल ज़मीन है। कई पीढ़ियों से चले आ रहे ज़मीन के बंटवारे की वजह से ही प्रति व्यक्ति ज़मीन छोटी होती जा रही है।

फोटो प्रतिकात्मक है

लिंग अनुपात और शादी

कम ज़मीन होने की वजह से कई पुरुष अविवाहित हैं। 2013 में 8.1 प्रतिशत घर ऐसे थे जहां कम से कम एक पुरुष अविवाहित हैं। ये आंकड़ा 2007 में 5.7 प्रतिशत था। हाल फिलहाल में गांव में एक नया ट्रेंड शुरु हुआ है। अगर किसी परिवार में दो लड़के हैं और उस परिवार के पास काफी कम ज़मीन है तो परिवार जानबूझकर और सहमति से एक लड़के की शादी नहीं करवाता। आसान शब्दों में कहें तो परिवार का एक लड़का अपने वैवाहिक जीवन का त्याग कर देता है। इसकी वजह ये है कि आगे और हिस्सों में ज़मीन का बंटवारा ना हो, और इससे जिस भाई की शादी की जाएगी उसे दहेज में भी अच्छे पैसे मिलेंगे। एक चौंकाने वाला मसला ये भी था कि गांव में 19 साल से ज़्यादा की कोई भी लड़की अविवाहित नहीं थी।

लेकिन जब आप वैवाहिक जीवन के त्याग वाली थ्योरी की सच्चाई जानेंगे तो दंग रह जाएंगे। गांव के ही एक परिवार ने बताया कि असल में ये प्रथा दो भाइयों के बीच एक ही पत्नी साझा करने की व्यवस्था बन गई है। यानी कि दो भाईयों कि एक कॉमन पत्नी। परिवार ने ये भी बताया कि ये पूरे गांव में एक सर्वमान्य प्रथा बन चुकी है। इस गांव का हर इंसान इस राज़ से वाकिफ है। हालांकि बहुपतिवाद(एक ही स्त्री के एक से अधिक पति वाली प्रथा) को कानूनी मान्यता नहीं है इसिलिए एक ठोस आंकड़ा मिल पाना मुश्किल है। ये प्रथा उन परिवारों में ज़्यादा प्रचलित है जिनके लिए खेती ही एकमात्र साधन है। हालांकि दलितों और ब्राह्मणों के बीच ये प्रथा ज़्यादा प्रचलित नहीं है।

2007 के हमारे सर्वे के 6 साल बाद किए सर्वे यानी 2013 में हमने पाया कि 28 साल से ज़्यादा की उम्र वाले ऐसे पुरुष जिनकी शादी नहीं हुई है उनकी संख्या बढ़ के 12 हो गई है। जिनकी शादी 2007 में नहीं हुई थी वो 2013 में भी अविवाहित ही थे, उनमें 5 और पुरुष जुड़ चुके थे और इन सबकी वजह ज़मीन का बंटवारा था।

ना सिर्फ ये आर्थिक दृष्टिकोण से भयावह है बल्कि एक गरीबी और परिवार का पोषण ना कर पाने की तस्वीर को भी सामने लाता है। अलग अलग परिवारों से बहुपतिवाद के आंकड़ें निकालना मुमकिन नहीं है क्योंकि ये परिवार के इज्ज़त की बात है और गैरकानूनी भी। हम ये बात समझ चुके थे कि बहुपतिवाद सिर्फ ज़मीन पर अधिकार से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि समुदाय के इज्ज़त की भी बात है। उदाहरण के लिए जंमीदार वर्ग के लोग कभी मज़दूर के तौर पर काम नहीं करते और उनका मानना है कि बड़े ज़मीन के टुकड़े के साथ एक छोटा परिवार एक बेहतर ऑप्शन है। खेती से जुड़े समुदाय भी मज़दूरी नहीं करना चाहते और ना ही वो इस गांव के ब्राह्मणों की तरह पढ़े-लिखे हैं जिसके कारण कोई और व्यवसाय कर सकें। ज़मीन और खेती पर इतनी निर्भरता, इससे जुड़ी आन और कम होता लिंग अनुपात ये सब मिलकर लगातार बहुपतिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। मनखेरा का ये चौंकाने वाला सच दिन ब दिन और भी भयावह होता जा रहा है।

एक जाट परिवार में सर्वे के दौरान हमने परिवार के अलग सदस्यों के साथ एक 17 दिन पुरानी बच्ची का विवरण लिखा। कुछ ही देर बाद बच्ची के दादी ने हमसे बच्ची के सारे डिटेल हटाने के लिए कहा, हम वजह नहीं समझ पाए। हालांकि हम बिना किसी पुख्ता सुबूत के यहां पर कन्या बाल हत्या का कयास नहीं लगाना चाहते।

सर्वे के रिपोर्ट से ये बात सामने आई है कि ज़मीन के अधिकार में असमानता काफी बढ़ी है, एक जाति के बीच भी और अलग-अलग जातियों के बीच भी। हालांकि हमारे सर्वे का मकसद कृषि संबंधित समस्याओं का पता लगाना था लेकिन जो सामने आया वो बेहद चौंकाने वाला था।

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