क्या सचमुच में ये एक शादी भी थी? पिछले कुछ सालों में मैंने ये सवाल खुद से कई दफा पूछा है।
शादी और एंगेजमेंट के बीच का एक साल बहुत ही प्यार से गुज़रा। मेरा मंगेतर लगातार मुझसे बातें करता था, दिल्ली में रहने के बावजूद हमेशा टच में रहता था। उस एक साल के बाद मेरे होमटाउन फुलबानी में बहुत ही धूमधाम से शादी हुई।
वो हमारी शादी की रात थी जब मेरे पति ने मुझे ये बात बताई कि वो दिल्ली में पहले से किसी लड़की के साथ रहता था और मुझे इसकी बिल्कुल इजाज़त नहीं थी कि मैं वहां जाके उससे मिलूं।
मैं उसके इस धोखे और ढिटपने से सकते में थी। मैंने फिर भी खुद को किसी तरह समेटते हुए पूछा कि तुमने मुझसे शादी क्यों की? बहुत ही सख्त और बिना भाव के उसने जवाब दिया अपने परिवार को संतुष्ट करने के लिए, तुम यहां रहो और उनकी देखभाल करो, मेरी ज़िंदगी दिल्ली में है मेरे प्यार के साथ।
एंग्जेमेंट के दौरान वो अक्सर मुझे चिढ़ाता कि मैं एक नई लड़की ले आउंगा और तुम्हें छोड़ दूंगा। मुझे इसकी भनक तक नहीं थी कि ये मज़ाक नहीं था। अचनाक से अब वो दूर था और मैं शादीशुदा होकर भी अकेली बिल्कुल अकेली। जो दो हफ्ते भी उसने मेरे साथ गुज़ारे उसमें छोटी-छोटी बातों पर लड़ने के अलावा कुछ नहीं किया।
शुरुआत में मैंने अपने पति के इस झूठ को राज़ रखा। मैंने कई दफा उसे फोन करने की कोशिश की लेकिन वो कभी नहीं उठाता। वो अपने परिवार में फोन करता था, सबसे बात करता था लेकिन मुझसे बिल्कुल नहीं। मैं धीरे-धीरे डिप्रेशन में चली गई, इस बात से परेशान होकर कि मेरी पूरी ज़िंदगी उस एक इंसाने की वजह से बर्बाद हो गई। बस एक चीज़ मेरे लिए पक्की थी कि मैं इस झूठे शादी को ज़्यादा दिन तक नहीं निभा सकती थी। लेकिन मैंने सुना था कि तलाक के पूरे प्रॉसेस में काफी लंबा समय लगता है और इसलिए मुझे कुछ और तरीका ढूंढना था।
मैंने सारी बात अपने एक रिश्तेदार को बताई, और उसने मुझे सलाह दी कि मैं राज्य महिला आयोग जाऊं। मैंने ऐसा ही किया और अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ एक शिकायत दर्ज करवाई। अभी तक उसके परिवारवाले ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं लेकिन मेरे कंप्लेन रजिस्टर करते ही उन्होंने मेरे उपर एक कंप्लेन कर दिया।
असंख्य प्रयास और भुवनेश्वर की बार बार यात्रा करने के बाद मैं इस प्रॉसेस की निर्रथकता समझ चुकी थी। इसके बाद मैं कंधमाल ज़िले के SP के पास गई। वहां से मुझे सोशल डेवलपमेंट संस्था के द्वारा चलाए जाने वाली महिला सहायता केंद्र भेज दिया गया।
ये मेरे जीवन के लिए एक निर्णायक मोड़ था। मेरा पति जो पहले तलाक के लिए मान गया था अब मुकड़ गया, और मुझे अब तलाक के लिए अर्ज़ी डालनी पड़ी। मैं अब पहले से ज़्यादा मज़बूत थी और इस शादी के ढकोसले से निकलने में चाहे कितना भी वक्त लगे मैं सभी चीज़ों के लिए तैयार थी।
इसी बीच महिला सहायता केंद्र ने मेरे पति और ससुरालवालों को हाज़िर होने का आदेश दिया। वो खुद कभी नहीं आया और बार-बार अपने बड़े भाई को भेजता रहा।
महिला सहायता टीम ने फिर एक सेटलमेंट करवाई। वो मेरे साथ मेरे ससुरालवालों के घर तक गएं और शादी के वक्त उन्हें दिया गया सारा सामान कब्ज़े में लेकर मुझे लौटाया। उन्होंने 20 हज़ार अलग खाने के मुआवज़े के तौर पर और 1500 जीवन निर्वहन मुआवज़े के तौर पर भी दिलवाया। सबकुछ वापस ले लिया गया सोने से लेकर बर्तन तक और कपड़े से लेकर फर्निचर तक।
इन चीज़ों के बाद मैं अपने जीवन के लिए एक नई दिशा तलाशने लगी। मैं अब फुलबानी के ही एक NGO AHIMSA में लड़कियों को पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की क्लास देती हूं। मैं उन्हें जीवन के प्रती मेरी सकारात्मक रवैय्ये के बारे में बताती हूं और उनमें सबका सामने करने के लिए हिम्मत जगाती हूं। मैं उन्हें अपनी शादी के बारे में बताती हूं और कैसे मैंने एक नकली शादी में सड़ने से बेहतर अपनी परेशानियों का अंत करने की ठानी। मैं अब अपने तलाक का इंतज़ार कर रही हूं। उसके बाद एक अच्छी नौकरी ढूंढूंगी कहीं और जीवन में कुछ अच्छा करूंगी।
मेरे पिता मेरी मां को छोड़ चुके थे और मैंने देखा है कि ये समाज हर वक्त उनसे कैसा बर्ताव करता था। मैं भी एक छोड़ दी गई लड़की जैसी नहीं बनना चाहती थी और सबसे बड़ी बात मैं अपने सम्मान के लिए समाज के भीख की मोहताज नहीं बनना चाहती थी। मैंने एकबार किसी आश्रम से जुड़ने के लिए हरिद्वार जाने का प्लान भी बनाया लेकिन फिर समाजसेवकों ने मुझे बताया कि इससे ज़िंदगी आसान नहीं होगी।
उन्होंने शादी के इस बुरे अनुभव से बहुत सी अच्छी चीज़ें सीखने में मेरी मदद की। मैं अब स्वतंत्र और सम्मान का जीवन जीने की कल्पना करती हूं बिना किसी दूसरे इंसान की इजाज़त लिए।
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