केंद्र सरकार की 28 फरवरी को जारी अधिसूचना में 1 जुलाई से आधार कार्ड को मिड डे मील योजना में अनिवार्य कर दिया गया है। मिड डे मील योजना से लाभ प्राप्त कर रहे लगभग 10 करोड़ बच्चों और उनके माता पिता के लिए आधार कार्ड अब अनिवार्य होगा।
इससे पूर्व केंद्र सरकार द्वारा आधार कार्ड की अनिवार्यता को अन्य योजनाओ से जोड़ा गया जिसमें जनधन योजना, मनरेगा और एलपीजी गैस के कनेक्शन को भी आधार संख्या के साथ जोड़ना आदि शामिल है। लेकिन ये मुद्दा बच्चों से जुड़ा है लिहाज़ा इस पर एक व्यापक पक्ष तैयार करने की ज़रूरत है।
केंद्र सरकार का मानना है की इसके माध्यम से मिड डे मील योजना में पारदर्शिता लाई जा सकती है। जबकि रोजी रोटी अधिकार अभियान से जुड़े लोगों को मानना है कि स्कूली बच्चो को भोजन का प्रावधान एक महत्वपूर्ण व आवश्यक पक्ष है जिसे उच्चतम न्यायालय के निर्णय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से लागू करने की कानूनी बाध्यता है।
विगत वर्षो में मिड डे मील योजना से बच्चों के नामांकन और उनकी उपस्थिति में बढ़त दर्ज की गई है तो ऐसी स्थिति में आधार कार्ड की अनिवार्यता एक गैर ज़रुरी कदम है। RTF ( Research Training Fellowship) संयोजक दीपा सिन्हा का मानना है कि प्रश्न ये है कि क्या पारदर्शिता वहां हो कि कितने बच्चे खाना खा रहे हैं? बल्कि सरकार को चाहिए कि निजी स्कूली बच्चों को भी इस योजना से जोड़े। उनका मानना है की ऐसे कदम से योजनाएं प्रभावित होगी।
कुछ बुनियादि बातें ये हैं कि कहीं ये कदम मिड डे मील योजना से लाभार्थी बच्चों के लिए परेशानी का सबब न बन जाए, जैसे नोटबंदी के समय हुआ था। इसके पीछे तर्क ये दिए जा रहे हैं कि गरीब और अशिक्षित परिवारों को ऐसी योजना से जोड़ना कितना आसान होगा? क्या तकनीकी त्रुटियों से समय से निदान के लिए सरकार सक्षम है? पहले सरकार को चाहिए की वो आधारभूत संरचना का विकास करे और सभी तकनीकी पहलूओं पर ध्यान दे।
कुछ लोगो का ये भी तर्क है कि बच्चो को इसमें शामिल करना गैर ज़रुरी है, सरकार को किसी अन्य विकल्प के बारे में सोचना चाहिए। जहां तक तकनीकी त्रुटि की बात है तो अभी भी ऐसे कई मामले सामने आये है जिसमे में आधार कार्ड से जुड़े मनरेगा और एलपीजी कनेक्शन के खातों में पैसे के हस्तांन्तरण संबंधी विसंगतियां प्रकाश में आई हैं।
समस्या ये नहीं है की सरकार द्वारा आधार कार्ड को मिड डे मील योजना में अनिवार्य क्यों की जा रहा है बल्कि मुख्य मुद्दा ये है कि ऐसे प्रावधानों में कई तकनीकी और आधाभूत संरचना से जुड़ी समस्याएं हैं। ऐसे में लाज़मी है कि इसके लिए एक व्यापक रणनीति बनाई जाए ताकि मासूम बच्चे अपने अधिकार से महरूम न रह जाएं।
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