नई दिल्ली। 15 जुलाई को प्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी की जन्मतिथि पर प्रभाष प्रसंग स्मृति व्याख्यान में किसानों के संकट को संबोधित करते हुए पी. साईनाथ ने कहा कि 1991 से 2011 के बीच लगभग 2000 किसानों ने रोज़ खेती छोड़ी। इस अंतराल में कुल 1 करोड़ 49 लाख किसान खेती से दूर हुए। उन्होंने किसान और सीमांत किसान के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए बताया कि वर्ष में 180 दिन से ज़्यादा खेती करने वाला व्यक्ति, जनगणना के अनुसार किसान है और 180 दिन से कम खेती से जुड़ा व्यक्ति सीमांत किसान है। उन्होंने बताया कि सीमांत किसानों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
सभा को संबोधित करते हुए साईनाथ ने कहा कि खेती पर संकट 1997 से आना शुरु हुआ। इस विपदा के बारे में अखबारों में नाकाफी तौर पर सन 2000 से थोड़ा लिखा जाना शुरु हुआ। साईनाथ ने कहा कि किसानों की आत्महत्या के आंकड़े इकट्ठा करने में सरकारें घालमेल कर रही हैं। अचानक से 12 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों ने घोषित कर दिया कि उनके राज्यों में किसान आत्महत्या के कोई मामले सामने नहीं आए। कर्नाटक राज्य में किसानों की आत्महत्या 46 फीसदी कम हुई लेकिन अन्य आत्महत्याएं 235 फीसदी बढ़ गई। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सरकारें किसानों की आत्महत्या के आंकड़े इकट्ठा करने में कितना अधिक गड़बड़झाला कर रही हैं।
महिला किसानों की दयनीय स्थिति की ओर ध्यान खींचते हुए उन्होंने कहा कि 60 प्रतिशत से अधिक खेतीबाड़ी का काम महिलाएं करती हैं। फिर भी महिलाओं का नाम किसान के तौर पर सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज नहीं होता है।
साईनाथ ने कहा कि किसान सूखे की समस्या से नहीं बल्कि ज़बरदस्त पानी के संकट से जूझ रहे हैं, जो लगातार दस अच्छे मानसून से भी कम नहीं हो सकेगा।
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि देश के प्रमुख अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर किसानों की समस्या को पिछले पांच सालों में सिर्फ 0.67 फीसदी जगह दी। इसी अवधि के दौरान टीवी न्यूज चैनलों ने अपने प्राईम-टाईम में किसानों की खबरों को सिर्फ 0.82 फीसदी जगह दी। उन्होंने कहा कि आज अधिकतर मीडिया संस्थानों के अंदर किसानों के लिए कोई संवाददाता नहीं हैं और अगर कहीं कृषि संवाददाता हैं तो वह किसानों के बजाय कृषि मंत्री को कवर करते हैं।
किसानों को गंभीर विपदा से बाहर निकालने के लिए साईनाथ ने सुझाव दिया कि सरकार 10 दिन का विशेष सत्र बुलाए। जिसमें सरकार और विपक्ष 2 दिन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर चर्चा करें। अगले दो दिन पीड़ित किसान परिवारों को संसद में बुलाकर उनकी गवाही लें, उसके अगले दो दिन महिला किसानों की स्थिति पर चर्चा करें। बाकी दिनों में किसानों के लिए नीतियां बनाकर सुनिश्चित करें कि इन नीतियों का लाभ हरेक किसान को मिलें।
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