साल 2018 में बड़ी शादियां हो रही हैं। हमारे बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक और इस बीच रॉयल वेडिंग को भी कैसे भूल सकते हैं। हाल ही में हुई शादियों में देखें तो सोनम कपूर ने आनंद आहूजा से ब्याह रचाया है। उसके बाद नेहा धूपिया ने अंगद बेदी से और मेगन मार्कल, प्रिंस हैरी के साथ शादी के साथ बंधन में बंध गयीं।
आपको लगेगा कि मैं इन सभी शादियों का ज़िक्र क्यों कर रही हूं, तो कारण है कि हर शादी के बाद लोगों की जुबां पर एक ही सवाल आया, “अरे, लड़की तो लड़के से बड़ी है।”
लोग सोनम और आहूजा की जन्म कुण्डलियां निकालने लगे और नेहा धूपिया को तो किसी ने यहां तक लिख दिया कि तुम्हें अंगद की बड़ी दीदी होना चाहिए पत्नी नहीं।

हालांकि नेहा धूपिया ने इसका करारा जवाब भी दिया है। लेकिन, मुख्य मुद्दा है कि आखिर ऐसे सवाल उठाए ही क्यों जाते हैं ? किसी कपल में मर्द भले ही 10 साल बड़ा हो, वो कभी मुद्दा नहीं बनता, ना उसपर कोई टिप्पणी करता है, तो महिला का बड़ा होना हमारे समाज को क्यों अखर जाता है। क्यों अचानक से समाज को लगने लगता है कि महिला ने लड़का फंसा लिया या उसने किसी स्वार्थ में आकर शादी कर ली है।
मर्द जब अपने से 15 साल छोटी औरत से शादी करे तो, प्यार सच्चा है, प्यार की कोई उम्र नहीं है और यही महिला करें तो उसके चरित्र पर धब्बे लग जाते हैं।
विचारणीय है कि जब सेलिब्रिटीज़ से लेकर रॉयल घराना तक इस टिप्पणी से अछूता नहीं है तो मिडिल क्लास जनता पर तो कितना दबाव होगा। यही कारण है कि शायद हमारे मां-बाप, बेटी के 27 पार होते ही BP की गोलियां गटकने लगते हैं। यह सब देखकर ताज्जुब नहीं होता कि बच्चों के सपने पूरे होने से पहले ही उनका गला मंगलसूत्र और वरमाला से घोट दिया जाता है।
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