नाटक वो नहीं जो देश की राजनीती में खेला जाता है,
नाटक उसे भी नहीं कहते जो सत्ता पाने के लिए हो,
नाटक वो नहीं जो पूंजीपति के पैसों से बदला जाए,
नाटक वो नहीं जो खुद को बेचकर कुर्सी को ख़रीदा जाए,
नाटक वो है जो,
बर्तोल्त ब्रेख्त की कविताओं में,
सफ़दर की आवाज़ में,
बादल की हुंकार में,
अगस्तो के नए किरदार में,
प्रेमचंद के देहात में,
शेक्सपियर के कारनामो में,
नाटक,
मज़दूरों की कुल्हाड़ी में,
बच्चों की मज़दूरी में,
औरतों की वारदात में,
रंगभेद की निति में है,
जातिवादी मानसिकता में,
कॉमवादी अफराद में,
किसानों की आत्महत्या में,
पैसों के सवालों में,
भूख के निवालों में,
सुलगते सवालों में,
फ़क़ीर के कटोरी में,
हां इन सब में नाटक है…
फोटो आभार- फेसबुक पेज Theatreworms Productions
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