मेरा राज्य झारखण्ड , प्रकृति ने तो जैसे अपनी सारी अदाएं इसे ही दे दी हों। हरियाली ,पोखर, महुआ की मादक सुगंध , पलाश की लाल पंखुरियां, हुंकार भरते जोन्हा और हुन्डरु के झरने, सघन जंगल और जंगलों में पसरी जानवरों और आदिवासियों की अटूट मित्रता। काला हीरा और चमकते माइका से पटा राज्य। जहां सूर्योदय और सूर्यास्त लाली बिखेर पूरे असमान को सिंदूरी कर देते हैं, जहां मौसम भी ज़रूरत के अनुसार बदलता है, जहां मंदिरों की घंटियां, अजान की पाक आवाज और गिरजाघर के घंटे अमन का पैगाम देते है।
लेकिन आज मन बहुत उदास है, विचलित है, परेशान है। यहां रह कर भी सुकून नहीं मिल रहा, बाहरी सुन्दरता के सामने भीतर की बुराई को कैसे छुपा लूं? कैसे मुंह मोड़ लो उन सब बातों से जिनका सरोकार मुझसे भी है। आज दफ्तर में फिर से मेरा वही काम था, अखबारों को खंगालो और विभाग से सम्बंधित खबरों को इकट्ठा करो। करीब 6 महीने से यह मेरा नियमित काम है, 6-7 अखबार, उन्हें पढ़ो ,खबरों को काटो और फिर फाइल में डालते जाओ।
खैर इन 6 महीनो में अगर कोई खबर ऐसी थी जो अखबार के किसी न किसी कोने में मिल ही जाती थी तो वो थी रेप की खबरें। खबरें ऐसी कि सुन के रूह भी कांप जाये, ऐसी जो ये सोचने को मजबूर कर दे कि क्या इंसानियत जैसी कोई चीज़ भी होती है दुनिया में? एक स्त्री जो 1 महीने की बच्ची हो सकती है, जो 11 वर्ष की किशोरी हो सकती है, जो 17 वर्ष की नाबालिग हो सकती है, जो 21 वर्ष की युवती हो सकती है, जो 31 वर्ष की गृहिणी हो सकती है, जो 41 वर्ष की महिला हो सकती है, जो 51 वर्ष की अधेर हो सकती है उसे यह नहीं पता की कल सुबह का सूरज उसके हिस्से में क्या लेकर आएगा।
हम कैसे माहौल में जी रहे है जहां दुष्कर्म करने वाला हमारे समाज में निगाहें मिला कर चल रहा है और हमारी बेटियों को नसीहत दी जाती है कि नज़रें झुका कर चलो। नज़रें इतनी झुका ली है हमने कि अब आंख होते हुए भी कुछ दिखता नहीं।
मेरे राज्य का एक शहरी निकाय है खूंटी। पिछले हफ्ते यहां कुछ लड़कियां नुक्कड़ नाटक करने आई थी, लोगों में मानव तस्करी के प्रति जागरूकता फैलाने आई थी। उन्हे कहां इल्म था कि उनकी नेकी ही उन्हें जीवन भर का दर्द देने वाली थी। पूरी टीम थी, पांच लड़कियां दो युवक भी थे। उत्साह था कि हम समाज में परिवर्तन लायेंगे। नाटक शुरू होता इससे पहले कुछ दरिन्दों ने पूरी टीम को अगवा कर लिया।
लड़कियों के साथ बर्बरता की हदें पार कर दी गई। सामूहिक दुष्कर्म के बाद उनके यौन अंगों में खैनी डाल दी गई। युवकों को बंद कर इस बर्बरता का मूकदर्शक बना दिया गया। उन अपराधियों ने इस घटना को मोबाइल पर वीडियो भी बनाया। पूरा पुलिस महकमा हिल गया। छोटे से बड़े अफसरों की परेड लग गई। कार्रवाई भी हुई लेकिन इन्साफ नहीं मिला। मोमबत्तियां भी जली, काली पट्टी भी बंधी, नारे भी लगे, पुतले भी फूकें गए, वो सब हुआ जो रेप होने के बाद होता है और हर बार की तरह इस बार भी इन्साफ नहीं मिला।
हमने तो एक आदत सी बना ली है, रेप होता है, मोमबत्तियां निकलती हैं, अखबारों में कोने में कहीं खबर भी निकल जाती है, टी.वी. पर बहस होती है, विपक्ष सरकार का पुतला जलाती है, सरकार निंदा करती है।
इन सब के बीच, बीतते समय के साथ हम इन्साफ की उम्मीद भी छोड़ देते हैं। एक पड़ोसी अगर दूसरे का एक तिनका भर ज़मीन भी ज़बरदस्ती ले ले तो गोलियां बन्दूक तक बात पहुंच जाती है। यहां तो औरत के शरीर पर ज़बरदस्ती की जाती है, बदकिस्मती उसकी कि उसे सब महसूस भी होता है। खूंटी घटना जैसी ना जाने भारत के कोने-कोने में कितनी बेटियां है जिनके साथ दरिंदगी की हदें पार कर दी गईं।
फोटो प्रतीकात्मक है
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