‘प्यार किया तो डरना क्या?’ हमने पूछा लड़कियों से।
“नहीं दीदी, हमारे मुहल्ले में ऐसी लड़की नहीं है जो प्यार करे।”
‘तो प्यार करना गलत है क्या?’
“हां, गलत है। उम्र के हिसाब से करना चाहिये। स्कूल पढ़ने के लिये होता है, इन सब चीज़ों के लिये नहीं।”
हमने जब लड़कियों से बात की तो ‘प्यार’ शब्द बोलते ही ढेर सारी मुस्कुराहट फैल गयी, कुछ मुंह पर हाथ रख कर हंसती रहीं, तो कुछ अपनी सहेली को मुस्कुरा कर देखने लगीं। यह तो साफ था कि प्यार के साथ छुपी है ढेर सारी हंसी, शर्म और झिझक। इन्हीं मुस्कुराहटों, बातों और छुपाने के बीच शुरू हुई हमारी बात प्यार के बारे में।
“प्यार के किस्से तो हर जगह हैं। पर मम्मी-पापा ने साफ मना कर दिया है कि लड़कों से बात मत करो और ऐसी लड़कियों से भी मत बात करो जो यह सब काम करती हैं। और फिर भाई हमारे ही स्कूल में पढ़ते हैं तो वह नज़र रखते हैं हम पर। स्कूल में टीचर भी चिल्लाती हैं ऐसे लड़के-लड़कियों पर, लेकिन वो लोग कहां सुनने वाले। स्कूल के पीछे वाली तरफ मिलते हैं, हम नहीं जाते वहां।”
प्यार और आकर्षण को लेकर ज़्यादातर लड़कियों में एक डर और कुछ गलत करने का एहसास है। और हो भी क्यों ना, यही तो एक चीज़ हैं जो वो अपनी मर्ज़ी से कर रही हैं, छुपकर, अपनी खुशी के लिये। और फिर जब प्यार को लेकर चेतावनी मिलती रहे तो फिर ये ‘सही’ कैसे हो सकता है। “मम्मी-पापा कहते हैं कि उलटे रास्ते पर मत जाना वरना अभी शादी कर देंगे। उल्टा रास्ता मतलब, प्यार-व्यार। वो इतनी मेहनत से हमे पढ़ाते हैं और हम गलत रास्ते पर चले जायें, अपनों का ही विश्वास तोड़ेंगे तो ऐसे प्यार का क्या फायदा?”
प्यार के साथ जो शब्द जुड़ गये हैं जैसे कि ‘उल्टा रास्ता’, ‘गलत काम’, ‘बदनामी, इनकी वजह से एक धारणा बन गयी है कि इससे जितना दूर रहा जाये उतना ही अच्छा है। लेकिन इस दूरी की वजह से लड़के-लड़कियां और अलग हो गये हैं और एक-दूसरे को लेकर जिज्ञासा, डर और भी बढ़ गया है।
“मेरे स्कूल में एक लड़की का लड़के के साथ बात करते हुए वीडियो बन गया था, वो मंदिर के पीछे बात कर रहे थे। किसी ने वो वीडियो सबके मोबाइल पर भेजा और मेरे भाई के पास भी आ गया। उसने देखा और मुझे बुला कर पूछा ये सब क्या है? मैं डर गयी, क्या बोलती, बहुत शर्म आयी। उस लड़की ने वीडियो में स्कूल का यूनिफार्म पहना हुआ था, बिलकुल अच्छा नहीं लगा ये देखकर। भाई बोला, तुम तो नहीं रहती इस लड़की के साथ, मैंने झट से मना कर दिया।”
गौर करने की बात ये है कि जितनी भी लड़कियों ने हमे इस वीडियो के बारे में बताया सबने कहा कि वो लड़की एक लड़के से बात कर रही थी, किसी ने भी उल्टा नहीं कहा कि एक लड़का वीडियो में एक लड़की से बात कर रहा था, जैसे कि ये किसी ने देखा ही नहीं, या शायद ये इतना गलत नहीं जितना कि एक लड़की का एक लड़के से बात करना।
बाद में उस लड़की का स्कूल तो छूटा ही, माता-पिता की इज़्जत पर भी बात आयी, और उसकी सहेलियों ने भी उससे बात करना छोड़ दिया क्योंकि अब वो ‘अच्छी लड़की’ नहीं रही।
प्यार, डर और शर्म की बातें यूंही धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयीं तो एक लड़की ने बताया, “मेरी एक सहेली के पीछे एक लड़का पड़ गया था। मैं उसकी जगह होती तो उस लड़के को वहीं रोक देती, बाद में प्यार-व्यार का चक्कर हो, क्या फायदा।” प्यार और छेड़छाड़ को लेकर कुछ उलझन है। जब पूछा कि दोनों में फर्क क्या है, तो उन्होंने बताया कि प्यार में मर्ज़ी है पर छेड़छाड़ में नहीं।
लेकिन उनका कहना था कि प्यार और छेड़छाड़ के बीच एक बारीक़ रेखा है, कब मर्ज़ी ना होना, मर्ज़ी में बदल जाता है और मर्ज़ी का होना कब असहमति बन जाता है, पता नहीं चलता। “किसी सहेली को कोई लड़का परेशान कर रहा हो तो हम उसके साथ जाते हैं, कोशिश करते हैं कि वो अकेली न रहे पर कुछ दिन बाद पता चलता है की वो भी उस लड़के को पसंद करने लगी है, अब हम क्या बोलें ऐसे में।”
एक बात तो साफ है कि प्यार इतना मासूम और आसान भी नहीं। इसके ऊपर समाज का, इज़्ज़त का बहुत दबाव है। प्यार करना और भी खतरनाक तब हो जाता है जब समाज के ढांचे जैसे कि जाति, वर्ग या धर्म भी इस पर अपना असर डालने लगते हैं। प्यार सिर्फ दो लोग के बीच नहीं, एक सामजिक ज़िम्मेदारी बन जाती है।
अगर प्यार का किस्सा ‘ओपन’ हो जाये या सबके सामने आ जाये तो फिर परिवार को भी इसका बोझ सहना पड़ता है। कभी-कभी समाज से उनको एक तरह से अलग कर दिया जाता है। एक मुसलमान लड़के ने बताया कि वो एक हिन्दू लड़की से प्यार करता था लेकिन ये बात जब सबको पता चली तो शोर मचने के अलावा उसके और उसके परिवार के जीवन में छोटी-छोटी चीज़ें बदल गयीं जैसे कि उस साल किसी ने उनके साथ ईद नहीं मनाई और उनको अपनी मस्जिद भी बदलनी पड़ी। फिर इस तरह की प्यार की कहानी एक चेतावनी बन जाती है।
लड़कियों का यह कहना था कि कोई एक लड़की तो ‘अफेयर’ कर के भाग जाती है लेकिन झेलना हमें पड़ता है। उसके जाने से सख़्ती हम पर बढ़ती है।और उन्होंने यह भी कहा, “अगर किसी लड़के-लड़की के बीच प्यार की बात सबको पता चल गयी तो सबसे ज़्यादा भुगतना तो लड़की को ही पड़ता है। लड़की का स्कूल जाना सबसे पहले बंद करते हैं, कहीं भी आना-जाना बंद हो जाता है। लड़का तो फिर भी स्कूल जाता रहता है। लड़के को कोई घर में बिठाता है क्या? और अगर वो लड़की गलती से हमारी ही क्लास, स्कूल या मुहल्ले की हो, फिर तो पूछो ही नहीं कि कितना सुनना पड़ता है, तू मत करना ऐसे, माहौल खराब है, तुम तो इन चक्करों में नहीं हो। बहुत पढ़ चुकी अब घर बैठो, बाहर जाने का माहौल नहीं रहा। गलती हमारी हो या किसी और की, हमारी पढ़ाई छूटने का डर हमेशा लगा रहता है।”
लेकिन लड़कों की इस बारे में राय कुछ अलग थी। ज़्यादातर उन्होंने सुना है या अनुभव किया है, जो प्यार की कहानियां समाज के जाति, वर्ग और धर्म के दायरे में नहीं समाती वहां उन्हें हिंसा का रूप देकर लड़के पर केस कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में पैसे और सत्ता का इस्तेमाल कर लड़के के खिलाफ केस बनाया जाता है जहां कई बार लड़के को जेल तक हो जाती है। लड़की भी परिवार के दबाव में आकर झूठा बयान दे देती है। इस तरह के झूठे केस और लड़की का साथ न देने की वजह से लड़कों के मन में बड़ी नाराज़गी है।
“परिवार लड़की पर दबाव डालता है और वो लड़के के खिलाफ बोलने के लिये तैयार हो जाती है। लेकिन ताली एक हाथ से नहीं बजती। समझदार लड़की वो होती है जो अगर प्यार करे और परिवार को पता चल जाये, बात झगड़े और मार-पिटाई तक पहुंच जाये, तो वो लड़के का ही साथ दे। बीच में उसे छोड़कर अपने परिवार की सब बातें चुप-चाप न मान ले। समाज का विश्वास तो लड़की के साथ ही है। लड़की जो बोल दे वो ही सही, उसकी ही चलती है। ऐसे में लड़का कभी जीत नहीं सकता।”
ऐसे में अपनी पहचान और प्यार को लेकर एक डर है।
“मुझे एक लड़की पसंद थी। हम स्कूल के बाहर भी कभी-कभी मिलते थे। मेरे मुहल्ले में मैंने एक-दो केस सुने जिसमें लड़का-लड़की अलग-अलग समाज से थे और उनमें लड़के को जेल हो गयी। ये सुनके मैं बहुत डर गया और मुझे लगा मेरे बारे में भी सबको एक दिन पता चल जायेगा और सब गलत ही समझेंगे। फिर कुछ समझ नहीं आया तो सीधे प्रिंसिपल के पास जाकर सब बता दिया। और लड़की से भी फिर कभी बात नहीं की।”
एक लड़के ने और बताया कि एक लड़का-लड़की जो अलग-अलग समाज से थे, हिम्मत करके भाग गए क्योंकि उन्हें पता था कि यहां उनका साथ रहना मुश्किल है। लेकिन जैसे ही इस मामले में स्थानीय राजनितिक कार्यकर्त्ता शामिल हुए दोनों को पछताना पड़ा और वापिस भी आ गये।
इन सारे डर, उलझन और जोखिम के बाद भी दोस्ती और प्यार तो हो रहा है। लड़का और लड़की के ऊपर इस उम्र में हर वक्त निगरानी है, कहीं ज़्यादा मिलने या बात-चीत करने के मौके नहीं हैं फिर भी नज़रें तो टकरा रही हैं, “आंखों-आंखों में ही प्यार हो जाता है। घर के दरवाज़े पर ही खड़े हुए या छत पर और कभी-कभी मोबाइल पर बात हो जाती है। या फिर छोटे बच्चों के साथ संदेश भेज देते हैं या शादियों में मिलना होता है।”
जब हमने प्यार के बारे में बात शुरू की थी तो लड़कियों ने सबसे पहले कहा था, हमारे यहां नहीं होता ये सब। लेकिन फिर धीरे-धीरे प्यार की कहानियां सुनाई देने लगीं, प्यार के कई रंग सामने आने लगे फुसफुसाते हुए, हलके से मुस्कुराते हुए, डर, शर्म, इज़्ज़त, समाज, धर्म, जाति, कानून, पुलिस, केस, धोखा, खतरा, दोस्ती, दिल टूटना, प्यार का खत, शादी, भागना, आकर्षण – शब्दों का एक जाल-सा बुनता गया जिसमें प्यार और दोस्ती का हर रंग दिखने लगा।
लड़कों के लिये प्यार के बारे में बात करना जितना आसान था लकड़ियों के लिये उतना ही मुश्किल। उन्होंने बात डर, शर्म और इज़्ज़त से शुरू की। उनका कहना था, “फिल्म वाला प्यार देखने में अच्छा होता है करने में नहीं।” और जब लड़कों से बात शुरू की तो तपाक से बोले, “सबकी गर्लफ्रेंड होती है” और फिर कई प्यार की दास्तान सुनाई।
लड़कियों के लिये खुलकर बात करना मुश्किल था शायद इसलिए कि अपनी पसंद, अपनी मर्ज़ी, अपनी चाह के बारे में बात करने के लिए शब्द और हौसला अभी मिला नहीं। इस उम्र में गलती के एहसास के बिना प्यार और दोस्ती करना अभी सीखा नहीं।
इस उम्र में जिज्ञासा है, सवाल हैं, कुछ नया करने का जोश है। खुद के लिये क्या सही है और क्या गलत अभी इतना पता नहीं है। लेकिन समाज हर वक्त इसका एहसास दिलाता रहता है। इस उम्र में एक दोस्त की ज़रूरत होती है ,बजाये इसके कि कोई हर वक्त रोकटोक करता रहे। कई बार समाज ऐसा माहौल बना देता है जहां लड़का-लड़की एक-दूसरे की तरफ देखें भी तो उन्हें गलत समझ लिया जाता है, ऐसे में एक डर पैदा होता है और घुटन भी। और इसके कभी-कभी विषम परिणाम भी होते हैं, जैसे की घर से भाग जाना या केस पुलिस तक पहुंच जाना, जिसका असर पूरे जीवन पर पड़ता है।
क्या हम कोशिश कर सकते हैं कि इस उम्र में इतना दबाव न बनाये जिससे लड़की- लड़के एक दूसरे से ही डरने लगें और एक दूसरे को समझ न पाएं। ऐसा माहौल बनाये जहां खुल कर बात हो सकती है, अपने सवाल, झिझक और शर्म बिना डरे वो सामने रख पाएं, और जहां उन पर समाज के सही गलत का बोझ ना हो।
ये लेख एक कोशिश है समझने की, यौन हिंसा समाज में कैसे पनपती है ताकि हमारी प्रतिक्रिया सिर्फ एक केस या घटना तक सीमित न हो। ये लेख आधारित है जनसाहस और मरा द्वारा मध्य प्रदेश के तीन ज़िलों में किये गए फील्ड वर्क पर। जनसाहस संस्था जाति आधारित हिंसा और यौन हिंसा के मुद्दों पर काम करती है। मरा एक मीडिया और आर्ट्स कलेक्टिव है जो जेंडर, जाति, वर्ग और मज़दूरी के विषय पर सामुदायिक और लोकल मीडिया के द्वारा काम करता है।
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