बलात्कार की घटनाएं अब सूनी सड़कें, खाली बस, अंधेरी रात, अकेली लड़की, छोटे कपड़े इन सब बहस से कहीं आगे बढ़ चुकी है। अब बलात्कार व्यवस्थित तरीके से होता है। कैसे इसे समझने के लिए 15 साल राज करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री के शब्दों में “व्यवस्था में फ्लॉ है।”
व्यवस्थित तरीके से मेरा अभिप्राय है दो तरीकों से है। पहला जो “व्यवस्था में” बैठकर लोग अंजाम देते हैं, जैसे मुजफ्फरपुर बालिका गृह केस। दूसरा वे लोग जिन्हें “व्यवस्था से” कोई डर नहीं।
समूह में किसी लड़की का नियोजित तरीके से यौन शोषण करना फिर वीडियो बनाना फिर उसे लीक करने की धमकी देना। और कई बार वीडियो वायरल भी कर देते हैं। इन्हें “व्यवस्था से” डर नहीं, गया का केस याद करिए, जहानाबाद की उस नाबालिग बच्ची को याद करिए जिन्हें 5-6 लड़को ने घेर रखा था। व्यवस्था से नहीं डरने का एक कारण इनका खुद पर आत्मविश्वास है कि इज़्जत बचाने की बोझ से दबी लड़की कानून तक पहुंचेगी कैसे!
महिलाओं से संबंधित सोशल लेजिस्लेशन की कमी नहीं है। संविधान का मौलिक अधिकार हो या नीति निदेशक तत्व, फिर समय-समय पर कानून बना और संशोधन भी होते चले जा रहे, लेकिन बलात्कार और सुव्यवस्थित और बेखौफ तरीके से होने लगा। पिछले दिनों हुई सारी घटनाओं को देख लीजिए। उन्नाव, कठुआ, अब मुजफ्फ़रपुर हर जगह व्यवस्था वाले लोग हैं।
लेकिन व्यवस्था में बैठे लोग इतने ताकतवर होते हैं, व्यवस्था में बैठे हुए लोगों के पास अखंड शक्ति होती है क्या? तिस पर उस देश में जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हो? बलात्कार एक व्यवस्थित अपराध बन जाता है जब समाज अपनी आंख मूंद लेती है, जहां बाप, बेटी को, मामा, भगिनी को गर्भवती करे, जहां बहने भाई के खिलाफ और छात्राएं, शिक्षक के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत दर्ज़ कराए।
जहां बालिका गृह में नियमित रूप से जाने वाली डॉक्टर, जज और स्थानीय अपनी आंख बंद कर ले, बलात्कार फुटपाथ पर हो और स्थानीय तमाशा देखते रह जाएं (मध्यप्रदेश की घटना) जब समाज मृतप्राय हो जाए वहां बलात्कार व्यवस्थित अपराध (organised crime) बन जाती है।
व्यवस्था विहीन बिहार सरकार के प्रति रोष तो है लेकिन उससे पहले अपनी ज़िम्मेदारी तय करनी होगी। अगर बालिका गृह में आने- जाने वाले लोग मौन हों जाएं, बेटी अपने बाप- भाई के साथ सहज ना रह पाए तो फिर यह मसला व्यवस्था का कम और समाज का ज़्यादा है।
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