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गया गोलीकांड: सत्ता की विरासत का बढ़ता घमंड और सस्ती होती जानें

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प्रशांत झा:

gaya protest 1

सुरेन्द्र वर्मा द्वारा फेसबुक पर पोस्ट

जुर्म- सत्ता/रसूख के अहंकार पर चोट
सज़ा- मौत
स्थान- सत्ता तक पहुँचती इस मुल्क की कोई भी सड़क

अगर बात ऐसी घटनाओं की फ्रिक्वेंसी की करें, तो शायद ये देश हाई रिस्क ज़ोन में आता है। चाहे वो सत्ता किसी भी स्तर की हो।
बिहार के गया में जो हुआ वो सत्ता की सनक का एक क्रूर अध्याय है, जिसका प्रमाण मानव इतिहास के हर दौर में मिलता रहा है। हाँ तरीका ज़रूर बदला है। लेकिन एक सवाल जो बेहद ही उत्सुकता से जवाब तलाशता है, वो ये है कि क्या सत्ता का पारिवारिकरण ज़्यादा खतरनाक है या हमारे जीवन का अति पारिवारिकरण? यकीन मानिए अगर एक युवक को पारिवारिक अहंकार का सरंक्षण ना मिला होता, तो शायद आदित्य की गाड़ी के पहिय्ये बेरोक अपनी रफ़्तार से घर तक पहुँचते। अक्सर इस मुल्क में सत्ता में दखल या प्रभुत्व रखने वाले इंसान का पूरा परिवार सर्वेसर्वा के ओहदे से खुद को नवाज़ देता है, और फिर जन्म लेता है ताउम्र ना टूटने वाला सत्ता का घमंड।

लेकिन इस सत्ता संक्रामक प्रवृति को समाज में स्वीकृति कैसे मिली?
क्या वैसे ही जैसे इस देश में एक फ़िल्म स्टार की अगली पीढ़ी जन्म से ही सेलिब्रिटी होती है?
या जैसे किसी राजनितिक पार्टी में बपौती मौन सच्चाई के रूप में स्वीकार कर ली जाती है?
या वैसे ही जैसे अमूमन सभी शहरों में बाबुओं के बच्चों का लाल/पीली बत्ती वाली गाड़ी में घूमना एक आम दिनचर्या है?
या वैसे हीं जैसे पुलिसिया कार्रवाई लंबी गाड़ियों से उतरते रसूख के सामने कई बार दम तोड़ देती है?
क्या हमने सत्ता, रसूख और इससे पैदा हुए घमंड के पारिवारिकरण को सामाजिक स्वीकृति दे दी है?

दरअसल हमारे देश में इंडिविजुअल लिविंग यानी की व्यक्तिगत जीवन की परंपरा शुरू ही नहीं हो पाई। हम समाज में परिवार के महत्व, परिवार पर निर्भरता और इंडिविजुअलिटी यानी स्वाबलंबन में फर्क शायद हीं कभी सिखा पाते हैं। इस घटना के बाद भी पक्ष-विपक्ष हुआ, कानून अपना काम करेगा और दोषी को सज़ा भी मिलेगी, लेकिन क्या अब ज़रूरत इन बातों पर चर्चा करने की नहीं है कि आखिर एक इंसान का कमाया रसूख उसके पूरे परिवार की जागीर कैसे बन जाता है? मसलन क्यों किसी के माँ या बाप की कमाई शौहरत/रसूख/सत्ता उसके बच्चों की वसीयत बन जाती है?

वक़्त है की हम अपनी अगली नस्ल को ये समझा सकें कि जब पहचान अपनी होती है तो आँखें ऊँची होती हैं, बेशक साधन परिवार से मिला हो। वरना खैरात में मिली चीज़ों की या तो क़द्र नहीं होती या फिर जन्म लेता है अँधा अहंकार। यकीन ना हो तो बस ‘MLA’s Son‘ किसी भी सर्च इंजन में डालिये और नतीजे आपको हमारी सामजिक विफलता का प्रमाण देंगे; और हाँ एक बार सर्च ज़रूर करियेगा, आप लंबी लिस्ट देख कर समझ जाएंगे की मैंने यहाँ अलग-अलग घटनाओं का ज़िक्र क्यों नहीं किया।

The post गया गोलीकांड: सत्ता की विरासत का बढ़ता घमंड और सस्ती होती जानें appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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