Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.
बिहार में अगर अपराध की दर बहुत ज्यादा है तो इसका यह मतलब कतई नहीं हो सकता, कि मैं भी एक अपराधी, चोर या फिर हत्यारा हूँ। मेरे अपने शहर जहानाबाद में हुई जेल तोड़ने की घटना भी मुझे एक नक्सलवादी घोषित नहीं कर सकती। हो सकता है स्वच्छ भारत मिशन में बिहार का स्थान सबसे नीचे हो, लेकिन इसका भी मतलब यह नहीं है कि मैं सफाई से नहीं रहता। बिहार साक्षरता दर में सबसे नीचे आता है पर इसका भी यह मतलब नहीं है कि मैं साक्षर नहीं हूँ। जातिवाद बिहार में एक बड़ी समस्या है लेकिन इस आधार पर मुझे जातिवादी नहीं कहा जा सकता है। बिहार में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है लेकिन मुझे इस कारण भ्रष्टाचारी नहीं कहा जा सकता।
मेरी पहचान, मेरे बिहारी होने का मज़ाक उड़ना बंद कीजिये। मेरे गृह राज्य के आधार पर मुझ पर संदेह करना बंद कीजिये। बिहार कोई अलग देश नहीं है, यह प्रतिभाओं का वह गढ़ है जहां से देश को सबसे ज्यादा आई.ए.एस. अफसर और आई.आई.टी. इंजीनियर मिलते हैं। एक बिहारी या फिर कोई एक सम्पूर्ण क्षेत्र नहीं बल्कि एक इंसान अपराध करता है। मैं उम्मीद करता हूँ कि आप अच्छे से पढ़े लिखे हैं और आधुनिक भारत में बिहार के राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, और ऐतहासिक योगदान को समझते हैं। मुझे बुरा नहीं लगेगा अगर आप मेरी क्षेत्रीय पहचान का मजाक उड़ाएं, जो मेरे साथ आये दिन होता रहता है, और इस तरह कि कोई भी छोटी बात मेरे लिए सूरज को दिया दिखाने के समान होगी।
लेकिन भविष्य में कभी अगर आपकी आने वाली नस्लें किसी कारणवश बिहार में बस जाती हैं तो याद रखिये, उन्हें भी उसी प्रकार से उत्पीड़ित किया जाएगा जैसे आप मुझे करते हैं। भेदभाव के पीछे की मानसिकता केवल शरीर के रंग तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि क्षेत्र, धर्म, जाति, रीति रिवाज़ों, और भाषा आदि के आधार पर बढ़ती जाती है।
नहीं! यहाँ मेरी कोशिश खुद को बेचारा बतलाने की नहीं है। अगर आप खुद को गर्व से भारत माता की जय कहने वाला राष्ट्रवादी मानते हैं, तो मेरी क्षेत्रीय पहचार से परे आपको मेरा भी सम्मान करना चाहिए, क्यूंकि मैं भी इसी भारत माता का एक छोटा सा हिस्सा हूँ। लेकिन आपके क्षेत्रवाद के प्रदर्शन के लिए, भारत माता के इस हिस्से को आप अपनाने से इंकार करते हैं तो आप कुछ भी हो सकते हैं लेकिन एक राष्ट्रवादी नहीं। अगर आपके बटुए से कोई दस हज़ार रूपए चुरा लेता है जो बिहार का रहने वाला है, और इस कारण आप मुझे भी चोर कह रहे हैं तो माफ़ कीजियेगा पर आप एक देशद्रोही से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं।

महाराष्ट्र में उत्तर भारत के लोगों पर आये दिन होने वाले हमलों में कुछ क्षेत्रीय उपद्रवीय तत्वों और राज ठाकरे जैसे क्षेत्रीय नेताओं की संलिप्तता महाराष्ट्र राज्य में अनेकवाद को गम्भीर रूप से क्षति पहुंचा रही है। प्रत्येक उत्तर भारतीय को महाराष्ट्र में बसने और रहने का उतना ही अधिकार है जितना कि किसी दक्षिण भारतीय या मराठी या फिर किसी भी अन्य भारतीय को उत्तर भारत में रहने और बसने का है। २००८ में उत्तर भारतियों पर हुए हमले जो खुद को मराठियों का नायक कहने वाले राज ठाकरे के समर्थन से किये गए वो खुद शिवाजी की भूमि पर एक काला धब्बा हैं।
पूर्वोत्तर के लोगों को ‘चिंकी‘ या ‘बांग्लादेशी‘ आदि कहना भारतीय समाज में मौजूद नस्लवादी मानसिकता का ही सूचक है। पूर्वोत्तर के लोगों पर दिल्ली में हो रहे लगातार हमलों नें उन्हें अपने ही देश में डर कर रहने पर मजबूर कर दिया है। शाहरुख़ खान की फिल्म ‘चक दे इंडिया‘ में भी इसी नस्लीय भेदभाव और पूर्वाग्रहों की झलक देखने को मिल जाती है, जहाँ एक पंजाब की लड़की झारखण्ड की दो आदिवासी लड़कियों का इसी आधार पर मजाक उड़ाती दिखती है।
एक मजबूत जनतंत्र अपने हर नागरिक को उसकी नस्लीय पहचान के उलट, सामान रूप से उसके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होता है। लेकिन ईमानदारी से कहूं तो हम इसमें असफल हुए हैं, और हम तब तक सफल नहीं हो पाएंगे जब तक हम विवेकशील और तर्कसंगत युवा, कमजोर नस्लीय समुदायों के हक़ की लड़ाई में उनके साथ खड़े ना हो जाएँ। केवल गोष्ठियों, सम्मेलनों और बुद्धिजीवी वर्ग के बीच होने वाले वाद–विवाद इस समस्या का हल नहीं हैं। इस समस्या के हल के लिए ज़मीनी स्तर पर जैसे स्कूली बच्चों और आम लोगों यानि कि हमारे घरों में, विभिन्न समुदायों के प्रति सहनशीलता को बढ़ाना होगा। इस समस्या का हल है ऐसे स्कूल और कॉलेजों का विकास करना जहाँ अलग–अलग नस्लों और समुदायों के बच्चे साथ में पढ़ें, खेलें और एक दूसरे से बात कर सकें। इस समस्या का हल है कि लोगों को समझाया जाए कि किसी एक इंसान की गलती या अपराध के आधार पर उससे जुड़े पूरे समुदाय के साथ होने वाली हिंसा जायज़ नहीं है।
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