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गुडगाँव में कैसे लगा 15 घंटों का मेगा ट्रैफिक जाम और फिर रहा प्रशासन नाकाम

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शाश्वत मिश्रा:

मिलेनियम सिटी कहे जाने वाले गुडग़ांव (बदला हुआ नाम गुरुग्राम) मे 15 घंटे से भी ज्यादा समय तक लगा ट्रैफिक जाम हरियाणा सरकार की व्यवस्था प्रणाली पर एक तमाचे से कम नहीं है। एक तरफ जहां इस जाम के चलते गुडग़ांव को शर्मसार होना पड़ा है, वहीं दूसरी तरफ इसी जाम ने हरियाणा सरकार को हकीकत का आईना दिखा दिया है। मात्र 3 घंटे की भीषण बारिश में गुडग़ांव के अधिकतर ईलाकों मे लबालब पानी पानी भर गया। गुडग़ांव के इतिहास मे ऐसा भयावह जाम पहले कभी नहीं लगा था। ऐसा माना जाता है कि भारत मे तीसरा सर्वोच्च प्रति व्यक्ति आय होने के साथ गुडग़ांव एक प्रमुख वित्तीय और औद्योगिक केंद्र बन चुका हैं।

गुडग़ांव अर्थव्यवस्था के लह्जे से ना केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विख्यात हैं। ऐसे महत्वपूर्ण शहर की बदहाली हरियाणा सरकार की लापरवाहियों को साफ दर्शाती है। सरकार के गैरजिम्मेदाराना रवैये के कारण गुडग़ांव की ट्रांसपोर्ट प्रणाली लगभग ठप हो गई थी। जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ा। गुड़गांव मे ट्रेफिक जाम की समस्या कोई नई नहीं हैं। यहां के कई ईलाको मे आए दिन लोगों को जाम का सामना करना पड़ता हैं।

जाम की शुरुआत राजीव चौक से हीरो होंडा चौंक और सोहना रोड से हुई। लोगों की मुश्किलें तब बढने लगी जब मरम्मत के कारण बंद की गई बादशाहपुर ड्रेन बारिश के पानी का दबाव झेल ना सकी और टूट गई। जिसकी वजह से एक्सप्रेस वे पर पानी का लेवल 2 फीट से 4 फीट हो गया।देखते देखते यह जाम एक्सप्रेस वे की दिल्ली-जयपुर लेन से होते हुए इफको चौंक पहुंच गया। बारिश के पानी के कारण कुछ गाड़ियां बीच सड़क पर ही खराब हो गई तो कुछ का पेट्रोल-डीजल खत्म हो गया। रात तक हीरो होंडा चौक, सोहना रोड, सुभाष चौक के अलावा गुडग़ांव के अधिकतर इलाकों मे जाम की स्थिति बद से बदतर हो गई।आश्चर्य की बात तो यह है कि लोगो के हंगामे के बाद प्रशासन की नींद खुलीं। सोशल मीडिया वेबसाइट्स पर जब लोगों ने सरकार को कोसा और अपना गुस्सा जाहिर किया,तब जाकर पुलिस हरकत मे आई और जाम खुलवाने की कोशिश शुरू हुई।

इस जाम मे फंसे ज्यादातर लोग आफिस जाने वाले लोग थे। जो या तो नाईट शिफ्ट के लिए आफिस जा रहे थे या आफिस का काम खत्म करके घर लौट रहे थे। देर रात तक हालात इतने बिगड़ गए कि गाड़ियों मे सवार भुखे-प्यासे लोगों को अपनी पूरी रात गाड़ी मे ही गुजारनी पड़ी। सबसे बुरा हाल रहा जाम में फंसे बूढों, महिलाओं और बच्चों का, जिन्हें सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा। उस रात का माहौल बहुत दुखद था। बच्चे पुरी रात भुख-प्यास से बिलखते रहे। गाड़ियों मे फंसे लोगों की पूरी रात जाम खत्म होने के इंतजार मे ही बीती। देर से ही सही पर हरकत मे आई प्रशासन की कड़ी कोशिशों की बदौलत सुबह तक ट्रैफिक खुलने लगा। दोपहर होते-होते काफी हद तक स्थिति सामान्य जरूर हो गई, मगर सड़कों पर जल जमाव के कारण गाड़ियां रेंगती ही नज़र आई।

एक तरफ जहां लोग जाम के कारण उत्पन्न हुई भयावह स्थिति का सामना कर रहे थे। वहीं दूसरी तरफ सरकार आरोप प्रत्यारोप मे उलझी दिखी। गुड़गांव मे बिगड़े हुए हालात पर उठते सवालों के जवाब मे हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने ट्वीट कर कहा कि “दिल्ली सरकार से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। और इस बारे मे दिल्ली के सीएम से पूछा जाना चाहिए।” हरियाणा के सीएम के इस ट्वीट पर पलटवार करते हुए दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया ने भी ट्वीट कर कहा कि “गुड़गांव का नाम गुरूग्राम रखने से विकास नहीं होता। विकास के लिए योजनाएं बनाना और उन पर अमल करना जरूरी होता हैं।इस ट्रैफिक जाम के चलते लोग 15 घंटे से भी ज्यादा समय तक सड़क पर फंसे रहे। बारिश के चलते हालात और भी खराब हुए।” दिल्ली के डिप्टी सीएम ने गुड़गांव मे ट्रैफिक जाम से बिगड़ी स्थिति को लेकर हरियाणा मे सत्तारूढ़ बीजेपी पर सवाल उठाए और वहां के प्रशासन को खरी-खोटी सुनाई। वहीं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी बीजेपी को लपेटे मे लेते हुए ट्वीट कर कहा कि “यह है बीजेपी गवर्नेस।” सच कहूँ तो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आता सियासत का यह चलन। ना जाने क्यों अब खुद को सही साबित करने से पहले दूसरों को गलत साबित करना इतना जरूरी हो गया हैं।

इस मामले के बारे मे नजदीकी से अध्ययन करने पर एक और अहम बात सामने आई कि सड़क के आस पास के दुकानदारों ने जाम मे फंसे लोगों की मजबूरी का भरपुर फायदा उठाया है। दुकानदारों द्वारा जाम मे फंसे लोगो को उनके जरुरतों की चीजें निर्धारित दाम से कई गुना ज्यादा पर बेची गई। भुख-प्यास से बेहाल लोगो को 50-50 रूपये मे एक रोटी और दो सौ रूपये मे एक बोतल पानी खरीदना पड़ा। जब एनएच 8 के आस-पास स्थित ढ़ाबा और रेस्टोरेंट मे भूखे लोगो की भीड़ बढ़ने लगी तो वहां के संचालकों ने मानवता को नज़र अंदाज करते हुए रेट कई गुना बढ़ा दिए।

दुकानदारों के इस स्वार्थपरक रवैय्ये नें, ना केवल गुड़गांव को लज्जित किया है बल्कि मानवता को भी कलंकित कर दिया है। मानव हो कर भी अगर मुसीबत मे मानव के काम नहीं आ सकते, तो यकीन मानिए हमें मानव कहलाने का भी कोई अधिकार नहीं है। मुसीबत के वक्त तो जानवर भी दूसरे जानवर की मदद कर देता है, हम तो खैर इंसान हैं। ना जाने यह देश किस ओर जा रहा है। सरकार अपनी जिम्मेदारियों को दूसरों के सर मढ़ने मे मसरूफ है और लोग स्वार्थ मे अंधे हुए जा रहे हैं।

कुछ सवाल हैं मेरे जेहन मे जो मुझे अंदर ही अंदर नोचे जा रहे हैं। जैसे हरियाणा ही नहीं भारत के कई और हिस्सों मे प्रशासन की नींद क्यों हालात बिगड़ने के बाद ही खुलती है? एक बार जब स्थित बेकाबू हो जाती है तब सरकार बड़ी दृढ़ता से अपने कोशिशों का कारवां शुरू करती हैं। मुझे समझ मे नहीं आता है कि उनकी कोशिशों मे यही दृढ़ता, स्थिति सामान्य होने पर क्यो नहीं नज़र आती? क्यों हर बार सरकार अपने दायित्व के प्रति जिम्मेदार होने के लिए मुसीबत के आने का इंतजार करती है? शायद ऐसे ही कई सवाल आज सिर्फ मेरे ही दिल मे नहीं है बल्कि करोड़ों लोगों के दिल मे है। मगर फिलहाल तो ऐसे प्रश्नों का कोई उचित जवाब मिलता नज़र नहीं आ रहा है।

सालो से ऐसा ही होता आ रहा है। मुसीबतें आती हैं, हालात बिगड़ते हैं, लोग परेशान होते हैं।सरकार अपने अल्फाज़ो को करूणा मे डुबोकर खेद व्यक्त कर देती है। और मात्र कुछ महीनों मे ही उस भयंकर स्थिति को देश भी भूल जाता है। वक्त बदलता है,लोग बदलते है और सरकार की गाड़ी एक बार फिर सब कुछ भूल कर पुरानी पटरी पर चल पड़ती है। फिलहाल तो एक ही सवाल करुंगा, कि आखिर कब तक चलेगा ऐसे? आप भी सोचिएगा।

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